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हम होंगे कामयाब - विवेकानंद विकास परिषद

लकी चतुर्वेदी बाजपई | इच्छापुर | पश्चिम बंगाल

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रीता करमाकर, रूमा हज़ारा और रुखसाना खातून तीनों की पृष्ठ भूमि भले ही अलग-अलग हो, मगर उन्होंने अपनी सफलता की कहानी एक ही स्याही से उकेरी है- सेवा की स्याही से- समर्पण की कलम से लिखी इन के सफल जीवन की इबारत, आज पश्चिम बंगाल के अनेकों पिछड़े गांवों में, हज़ारों बहनों को प्रेरणा दे रही है। 


पश्चिम बंगाल में सेवा भारती से संबद्ध विवेकानंद विकास परिषद द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्सेस व अन्य शैक्षिक कार्यक्रमों में प्रशिक्षु रहीं रीता, रूमा और रुकसाना अपने-अपने फील्ड्स में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। रीता झारखंड में अच्छी सरकारी नौकरी में हैं। रमा एक सफल फ़ैशन बूटिक चलाती है। रुखसाना खातून परिषद द्वारा ही संचालित एक वोकेशनल ट्रनिंग इंस्टीट्यूट में फैकल्टी मेंबर हैं। 




कोलकाता से 214 कि.मी. दूर आसनसोल जिले के इच्छापुर गांव, जो पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़े ग्रामीण अंचल में आता है, वहाँ आज विवेकानंद विकास परिषद द्वारा 6 कोचिंग सेंटर्स, 10 बाल संस्कार केंद्र, 3 फ्री मेडिकल सेंटर्स, 2 न्यूरोपैथी केंद्र, 5 महिला स्व-सहायता केंद्रों व अनेक वोकेशनल ट्रेनिंग कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। विवेकानंद विकास परिषद वर्ष 1989 में तत्कालीन स्थानीय जिला संघचालक स्व. मलय राय जी के प्रयासों से अस्तित्व में आई। तब से आज तक परिषद ने ग्राम-विकास के क्षेत्र में अद्धभुत कार्य किया है। प्रान्त सेवा प्रमुख मनोज दा बताते हैं कि परिषद द्वारा संचालित विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों से लाभान्वित हो अभी तक पिछड़े ग्रामीण वर्ग की 200 बहनें आत्मनिर्भर एवं स्वावलंबी बन चुकी हैं। साथ ही कंप्यूटर कोर्सेस के छात्रों को भी निजी क्षेत्र की कंपनियों में अच्छी प्लेसमेंट मिल रही है। 


ग्राम विकास कार्यक्रम के ही अंतर्गत माँ शारदा ग्राम विकास समिति के माध्यम से सेवा भारती द्वारा तारकेश्वर जिले के तेजपुर गांव का तो एक प्रकार से कायाकल्प ही कर दिया गया है। इस गांव में चल रहे पाँचवी से आठवीं क्लास तक के स्टूडेंट्स के लिए फ्री कोचिंग सेंटर, डॉक्टर हेडगेवार चेरिटेबल क्लीनिक, बुक-बैंक, धर्म जागरण केंद्र,  माँ शारदा मातृमंडली व स्वयं सहायता समूहों के जरिए तेजपुर को आदर्श गांव की श्रेणी में ला खड़ा किया है। ठीक इसी तरह फैली  नदी के तट पर स्थित एक और अत्यंत पिछड़े गांव पिचखली की तो मानों तस्वीर ही बदल गयी है। सुंदरबन जिले के सह सेवा प्रमुख सृजन हजारे के अभिनव प्रयासों ने गाँव को मॉडल विलेज बना दिया है। बेहद पिछड़े इस गांव में सेवाकार्यों की शुरुआत करने के लिए खुद होम्योपैथी सीखी, फिर गांव में फ्री- होम्योपैथी चिकित्सालय की स्थापना की। आस-पास क्षेत्र में ख्याति प्राप्त होम्योपैथी चिकित्सक डॉक्टर गोपाल जी भी महीने में एक बार यहाँ आकर गरीबों का मुफ्त उपचार करते हैं। माँ अन्नपूर्णा ग्राम विकास समिति के माध्यम से यहां भगिनी शिशु संस्कार केंद्र, झोला पुस्तकालय, भजनमंडली व वर्मी खाद निर्माण प्रशिक्षण केंद्र भी संचालन किया जा रहा है। स्वयंसेवकों की प्रेरणा से महज़ 800 की आबादी वाले इस छोटे से गाँव मे आज 250 परिवारों ने अपने घरों में ग्राम पंचायत की मदद से पक्के शौचालय बना एक मिसाल कायम की है।

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