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सेवागाथा | महाराष्ट्र
एक मां का घर (स्वाधार)
"भगिनी निवेदिता प्रतिष्ठान" - सांगली महाराष्ट्र।
संघर्ष जीवन का श्रृंगार है, क्योंकि भट्टी में तप कर ही स्वर्ण कुंदन बनता है। जीवन का जन्म ही संघर्ष से होता है| सही दिशा और मार्गदर्शन मिल जाए तो यही संघर्ष जीवन को सफल कर देता है। स्वर्गीय डॉक्टर कुसुमताई ने सांगली, महाराष्ट्र में भगिनी निवेदिता प्रतिष्ठान के द्वारा ऐसे अनेक संघर्षमय जीवन यापन करने वालों को आत्मविश्वास से भर कर, प्रेरणा की कहानियां बना दिया।
मात्र 6 साल की काजल के माता-पिता एक गंभीर बीमारी के शिकार हो इस दुनिया से चल बसे, किंतु काजल ने इस दुख को खुद पर हावी नहीं होने दिया। आज पूरे आश्रम को उस पर गर्व है कि उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और स्वयं अपना आर्ट स्टूडियो चला कर समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बनी।
वहीं दूसरी ओर कविता अशोक गायकवाड जो माता-पिता से दूर बचपन से ही आश्रम में पली बढ़ीं, अपने संघर्षों की कलम से आज सुंदर भविष्य का निर्माण कर रही हैं। कोथरुड पुलिस स्टेशन पुणे में न केवल कार्य कर रही हैं बल्कि देश के प्रति एक पुलिस वाली होने के नाते सच्ची सेवा दे रही हैं।
देश की ऐसी अनेक बेटियां जिनका बचपन किसी काले अंधेरे की गलियों में, समाज की कुप्रथाओं में या किसी गंभीर शारीरिक और मानसिक बीमारियों के तले दबकर रह जाता, भगिनी निवेदिता प्रतिष्ठान ने ऐसी बेटियों का हाथ थामा और अपने आश्रम के आशियां में न केवल सुपोषित किया बल्कि अच्छी सभ्यता और संस्कारों के साथ समाज में नेतृत्व कर एक आदर्श समाज को स्थापित करने के लिए प्रेरित भी किया। आज वह सभी बेटियां इस प्रतिष्ठान के लिए गर्व हैं।
1 अप्रैल 1970 में डॉक्टर कुसुमताई घाणेकर द्वारा भगिनी निवेदिता प्रतिष्ठान की स्थापना हुई थी। जिसके विभिन्न आयामों द्वारा अभी तक 14000 से ज्यादा बेटियों व महिलाओं ने सही मार्गदर्शन, शिक्षा व सहायता प्राप्त करके अपने जीवन को नयी दिशा दी। एक आयुर्वेदिक डॉक्टर एवं राष्ट्र सेविका समिति की कार्यकर्ता होने के नाते कुसुमताई ने सरकारी अस्पतालों में महिलाओं और बच्चों की विशिष्ट परिस्थितियों को बहुत करीब से देखा था। एक अच्छी विशेषज्ञ होने के कारण वह यह समझ गईं थी कि महिलाओं को पूर्ण स्वस्थ करने के लिए केवल शारीरिक रूप से ही नहीं अपितु उनके मानसिक स्तर को भी सुदृढ़ और सक्षम बनाना होगा। समाज की गहराइयों में दबी कुप्रथाएं, अशिक्षा ,पौष्टिक आहार की कमी जैसे कई प्रश्नों का हल खोजना जरूरी था।
निवेदिता प्रतिष्ठान ने सर्वप्रथम कम उम्र में अत्याचार का शिकार होने वाली या अवैध शारीरिक व्यापार मे फंसी हुई पीड़ित लड़कियों व महिलाओं को आश्रय देकर भोजन इत्यादि की व्यवस्था करने के लिए माहेर (मां का घर) योजना का आरंभ किया। यही योजना वर्तमान में स्वाधार के नाम से जानी जाती है।
संस्था की प्रबंधक एवं कभी विद्यार्थी परिषद की पूर्णकालिक रहीं विनीता तेलंग दीदी बताती हैं कि यहां किसी भी प्रकार की पीड़ित महिला छह महीने से लेकर दो वर्ष तक निःशुल्क रह सकती हैं। यहाँ उनको शारीरिक, मानसिक, कानूनी काउंसलिंग, मेडिकल हेल्प तो मिलती ही है, साथ ही कौशल विकास द्वारा आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास भी किया जाता है। सरकारी योजनाओं के साथ सामंजस्य बिठाते हुए महिलाओं में जन जागृति शिविर, विविध उद्योग प्रशिक्षण, कैंटीन चलाना, स्टेशनरी की दुकान, ऑफिस की फाइलें बनाना, इस प्रकार के कई उद्योगों को प्रोत्साहन देकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाता है। स्वाधार गृह नियमित रूप से ब्युटी पार्लर, पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस प्रकल्प से अनेक लड़कियां पार्लर और नर्सिंग का प्रशिक्षण पूरा कर चुकी हैं और अब उसी क्षेत्र में कार्यरत हैं।
समाज में आने वाली सामायिक कुप्रथाओं में महाराष्ट्र और कर्नाटक में कुछ स्थानों पर देवदासी प्रथा दिखाई देती थी। कुसुमताई ने आंदोलन खड़े कर नेता बनने का विचार न कर माता की भूमिका निभाई। सामाजिक पतन के दौर में अशिक्षा और अज्ञानता के कारण इस दलदल में डूबती हुई मां अपनी बेटियों के सुंदर भविष्य की कल्पना तो छोड़ उन्हें इस दलदल से बाहर निकालने की भी सोच नहीं पा रही थी। उन अंधेरों को दूर करने के लिए प्रतिष्ठान ने एक निवासी प्रकल्प की स्थापना की, जहां मात्र 6 साल की बच्चियों को युवा होने तक पूर्ण शिक्षित, आत्मनिर्भर बनाकर समाज में स्वाभिमान के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित किया गया। उनके इस महत्वपूर्ण निर्णय ने ना केवल देवदासियों के जीवन में बल्कि समाज की सोच में भी परिवर्तन लाने का महत्वपूर्ण काम किया।
डगर कितनी भी मुश्किल क्यों न हो यदि दृढ़ इच्छाशक्ति है, तो आपको मंजिल तक जरूर पहुंचाती है। जब एच.आई.वी एक भयानक बीमारी थी तो कोई भी उसके विषय में कुछ भी नहीं जानता था, तब डॉक्टर कुसुमताई के साहस और निस्वार्थ सेवा का ही परिणाम था कि भगिनी निवेदिता प्रतिष्ठान संपूर्ण एशिया में वह पहला प्रतिष्ठान बना जिसने एच.आई.वी पॉजिटिव लड़कियों व महिलाओं के लिए निवास उपचार केंद्र चलाए। जहां उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास की संपूर्ण व्यवस्था, सरकार व समाज के सहयोग से होती है। वर्तमान में सांगली के यशवंतनगर मे एड्स बाधित लडकियों का निवासी आश्रम है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत के बौद्धिक प्रमुख, सुनील कुलकर्णी जी बताते हैं कि सांगली में संस्था द्वारा विभिन्न उपक्रम कार्य कर रहे हैं जिनमें 2 अनाथाश्रम, 2 फैमिली काउंसलिंग सेंटर, पीड़ित महिलाओं के लिये अल्पमुदत निवास केंद्र "स्वाधार", 'अन्नपूर्णा' फूड टेक्नॉलॉजी प्रशिक्षण केंद्र और अल्पशिक्षित और जरूरतमंद लड़के लडकियों के लिये 'डॉक्टर कुसुमताई घाणेकर व्यवसाय प्रशिक्षण केंद्र' चलता है।
इस सेंटर को वोकेशनल बोर्ड की मान्यता प्राप्त है। यहां पैरामेडिकल कोर्सेस और ब्यूटी पार्लर एवं फैशन डिजाइनिंग के कोर्सेस चलाए जाते है। यहां पढने वाली लड़कियों के लिए वसतीगृह की सुविधा भी है।
कुसुमताई की दूरदृष्टी से आरंभ हुई संस्था पचास साल पार कर चुकी है और महिलाओं के लिए कालसुसंगत प्रकल्प चला रही है।
रश्मि दाधीच ✍️
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