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और जिंदगी जीत गयी - नाना पालकर स्मृति समिति

अंबरीश पाठक | महाराष्ट्र

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फ़ोन पर आवाज़ भी साफ़ नहीं रही थी फिर कृष्णा महादिक उन बंगाली बाबू को पहचान भी नहीं पा रहे थे। वे बड़े असमंजस में थे की कोई सिलीगुड़ी से विकास चक्रवर्ती अपने बेटे की शादी के लिए उन्हें फ्लाइट का टिकट क्यूँ भेज रहे हैं| बात आखिर 20 साल पुरानी जो थी जब चक्रवर्तीजी अपने बेटे को एक लाइलाज रोग के लिए टाटा मैमोरियल हास्पीटल मुंबई लाए थे। तब पूरा परिवार नाना पालकर स्मृति समिति के रुग्ण सेवा सदन में रहा  था|





उस समय समिति के प्रबंधक संघ के स्वयं सेवक  कृष्णा महादिक थे, यहां आने वाले सैंकड़ों परिवारों की तरह इस मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार को रहने खाने की लगभग निःशुल्क व्यवस्था के साथ हर प्रकार की मदद मिली थी। यह 5 साल का बच्चा विदुरन को सीवियर ब्लड कैंसर  था तब इस बीमारी में लाखों में से ही कोई एक व्यक्ति जीवित रह पता था। इसमें बोनमैरो ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत  पड़ती है। 1997 में डाक्टरों ने 13 लाख रूपये खर्च बताया था जिसका इंतजाम चक्रवर्ती परिवार खुद को बेच कर भी नहीं कर सकता था| तब मुंबई में नाना पालकर स्मृति समिति ने  इस परिवार की सहायता का बीड़ा उठायाआज आई.आई.टी इंजिनियर बनने के बाद विदुरन अपने कृष्णा चाचा को कैसे भूल जाता? विकास चक्रवर्ती जी ने तो शादी का प्रथम निमन्त्रण पत्र ईश्वर के समक्ष रखकर समिति के कार्यकर्ताओं के सम्मुख रखा। विदुरन जैसे कितने ही रोगी जब कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के लिए टाटा मैमोरियल हॉस्पिटल आते हैं तो नाना पालकर रुग्ण सेवा सदन उनके लिए घर एवं परिजनों की भूमिका निभाता है





यहाँ मरीजों एवं उनके परिजनों के लिए 5 रूपये में नाश्ता 10 रूपये में भोजन व् आवास की व्यवस्था 1 माह के लिए बिल्कुल फ्री होती है| 1968 में कुछ कमरों से शुरू हुई यह समिति आज दस मंजिला इमारत में चलने वाले रूग्ण सेवा सदन, डायलिसिस पैथोलॉजी लैब, 14 डायलिसिस मशीन, टीबी ट्रीटमेन्ट सेन्टर, एम्बुलेन्स सर्विस एवं चिकित्सा केन्द्र योग प्रशिक्षण केन्द्र के सफल संचालन तक जा पहुंची है।





अपने माता पिता की इकलौती संतान विदुरन चक्रवर्ती जब यहाँ पहुंचा था तब उसके इलाज के लिए डॉक्टरों की एक ही शर्त थी! बोनमैरो  ट्रांसप्लांट सिर्फ सगे भाई-बहन में ही किया जा सकता हैतब विदुरन की माँ के लिए समिति का भवन ही मायका बना वह 9 माह वहां रही विदुरन का इलाज भी चलता रहा उसकी बहन ने भी यहीं जन्म लिया| अब समस्या इलाज में आने वाले खर्च की थी जिसमें भी समिति ने कुछ दानदाताओं के माध्यम से 2 लाख रूपये की मदद की एवं 4 लाख रूपये भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने दिए| आज बेंगलौर में ऐसेंचर कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजिनियर विदुरन चक्रवर्ती अमेरिकन मेडिकल साइंस में एक ऐसे केस के रूप में पढाया जाता है, जिसमें मेडिकल साइंस ने एक चमत्कार ही किया था| विकासजी की मानें तो यह सब टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डाक्टरों की मेहनत ही नहीं समिति के कार्यकर्ताओं के स्नेह आशीर्वाद के कारण हो सका।




ऐसी कितनी ही भावुक कहानियां आपको समिति के रुग्ण सेवा सदन में तैरती मिल जाएँगी| संघ प्रचारक स्वर्गीय नाना पालकर जी की स्मृति में बना यह रुग्ण सेवा सदन गरीब मरीजों एवं उनके परिजनों के लिए ईश्वर का घर है| 2004 से 2017 तक यहॉ डायलेसिस सेन्टर पर कुल 1,10,000 डायलेसिस हो चुके हैं। डायलेसिस की -कीमत सिर्फ 350 रूपए है, जबकि अन्य स्थानों पर यह कीमत हजारों रूपए है। समिति हर महीने करीब 6 लाख 50 हजार रूपए विभिन्न अस्पतालों में भर्ती मरीजों के ऑपरेशन इत्यादि में सहायता पर खर्च करती है। वाडिया हॉस्पिटल में जच्चाओें को नि:शुल्क भोजन भी वितरित किया जाता है। समिति का लक्ष्य मुंबई में एक भी रोगी को बाहर खुले में ना रहना पड़े, ऐसी व्यवस्था बनाने का है।

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