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शैलजा शुक्ला | मोहद | मध्य प्रदेश
यहाँ प्रवेश करते ही लगता है कि, हम किसी विशेष गांव में आ गए हैं। घर-घर के दरवाजे पर ओम व स्वस्तिक की छाप, दीवारों पर जतन से उकेरे गए सुविचार, तो कहीं ब्रम्हांड के रहस्यों को परत दर परत खोलती जानकारियाँ, तो कहीं चौपालों पर संस्कृत में अभिवादन करते लोग। वैदिक युग की छाप से नजर आते इस गांव में जब हम हम 50 तरह के उद्योग धंधे, व गोबर गैस प्लांटस से अल्टरनेटिव एनर्जी, का उपयोग होते देखते हैं, तो संस्कृति व विकास का अद्भुत समन्वय नजर आता है मोहद में। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील से महज 5 किलोमीटर दूर बसा यह गाँव संघ के पूर्व अखिल भारतीय ग्रामविकास प्रमुख स्वर्गीय सुरेंद्र सिंह चौहान जी का वो सपना है, जो आईडियल विलेज की हर कसौटी पर खरा उतरता है। आजादी के समय से चल रही संघ की शाखा व स्वयंसेवकों की बरसों की मेहनत रंग लाई है। गांव की साफ-सुथरी सड़कें, हरे-भरे वृक्षों की कतारें, खेल के मैदान और लहलहाते खेत आगन्तुकों को अपनी कहानी स्वयं सुनाने लगते हैं।
मोदीजी का स्वच्छ भारत, व शौचमुक्त भारत, मोहद में पहले से मौजूद है। सड़कें साफ सुथरी रहें इसलिए गांव के हर घर के बाहर सोखते गढ्ढे बनाए गए हैं, ड्रेनेज सिस्टम इतना बढ़िया है कि मोहद में कहीं गंदा पानी जमा नहीं होता। यहाँ हर घर में शौचालय है। सेवाभारती ने गांव के 230 परिवारों को शौचालय बनाकर दिए हैं, व शेष लोगों ने केंद्र सरकार की योजना के तहत बनवा लिए हैँ। अल्टरनेटिव एनर्जी के रूप में यहाँ बायोगैस का इस्तेमाल लगभग हर परिवार करता है। जब तक प्रदेश में बिजली का संकट था। तब तक बायोगैस से बल्ब भी जलाए जाते थे, लेकिन अब इन प्लांटो का उपयोग हर घर में खाना बनाने के लिए किया जाता है।
मोहद में स्माल स्केल इंडस्ट्रीज जैसे - कपड़ा बुनाई, खिलौना बनाना, फोटो फ्रेमिंग, मिट्टी के घड़े बनाना, मशीन से दोना-पत्तल बनाना, गमले बनाना, रूई की धुनाई, पेÏन्टग, मोटर बाइडिंग, कुर्सी बुनाई, अगरबत्ती बनाना, टीवी-रेडियो ठीक करना, मूर्तिकला को डेवलप कर बेरोजगारी की समस्या को ही खत्म कर दिया गया है। नाडेम कम्पोस्ट टैक्नीक से हो रही खेती ने किसानों की आमदनी को भी बढ़ाया है। मोहद के पूर्व सरपंच (सिविल इंजीनिय़रिंग में गोल्ड मैडलिस्ट) व संघ के स्वयंसेवक जवाहर सिंह जी बताते हैं, आज गाँव के 850 परिवारों के पास रोजगार के साधन भी हैं, व 90 प्रतिशत लोग पढ़े-लिखे हैं। 17 किलोमीटर तक पक्की सड़क भी बन चुकी है। जवाहरजी यह बताते फूले नहीं समाते कि यहाँ जातिवाद व भेदभाव का नामोनिशान नहीं है। बरसों से हो रही आदर्श हिंदू घर प्रतियोगिता भी अकसर दलित परिवारों ने ही जीती है।
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