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अंबरीश पाठक | महाराष्ट्र
भीषण आग की लपटें - और चारों ओर बस त्राहि-माम। दृष्टि जहॉ तक जा सकती थी, वहॉ तक था बस दम घोंटू धुऑ और बरसते आग के शोले। मृत्यु के इस तांडव के बीच फंसी इंसानी जिन्दगी चीख-पुकार मचाती बेबस सी नज़र आ रही थी। हर बीतते क्षण के साथ आग और अधिक वेग के साथ ऐसा विकराल रूप ले रहीं थीं मानों आसपास इंसानी रिहायश का जो भी चिन्ह मौजूद हो उसे राख में बदल देने से अतिरिक्त इस प्रचंड अग्नि को कुछ भी स्वीकार्य नहीं होगा। 07, दिसंबर 2014 की दोपहर मुंबई के कांदिवली इलाके की दामूनगर बस्ती पर कहर बन कर टूटी थी। गैस सिलेंण्डर में लगी आग ने देखते ही देखते पूरी बस्ती को अपनी ज़द में ले लिया था।
उन भयानक क्षणों में, जब ऐसा लग रहा था कि सब खत्म हो जाएगा, तब स्वयंसेवकों ने वह कर दिखाया जो मानव साहस की पराकाष्ठा है। घटना के समय, दामूनगर के नज़दीक ही एक विद्यालय पर संघ केस्वयंसेवकों द्वारा संचालित जनकल्याण समिति के स्वयंसेवक शशिभूषण शर्मा कुछ अन्य स्वयंसेवकों संग मौजूद थे। तेज धमाके की आवाज़ आई, तो वे उमेश दामले, प्रदीप शर्मा, चांद रैना, संजय खेतान और मनोज जैसे कई स्वयंसेवक धमाके की दिशा की ओर भागे। समीपवर्ती दामूनगर बस्ती से उन्हें आग की लपटें उठती दिखीं। उन्होंने फायर-ब्रिगेड को सूचना दी और बिना एक पल भी गंवाए वे सभी बस्ती के भीतर घुस गए।
बस्ती में हर तरफ बस आग ही आग थी। बदहवास लोग जान बचा इधर-उधर दौड़ रहे थे। तभी शशिभूषण जी को आग पकड़ चुका एक सिलेंण्डर दिखा। जान की बाज़ी लगा वह सिलेंण्डर पर लपके, और उसे लोगों से दूर फेंक दिया। एक पल की भी देरी होती तो सिलेंडर शशि जी समेत कितने लोगों की बलि ले लेता। अगले ही पल उन्हें वहीं एक अपाहिज वृद्ध महिला दिखी, भगदड़ में लोग उस बेबस महिला को कुचलकर आगे भाग रहे थे। शशिभूषण जी ने उस बूढ़ी मां को गोद में उठाया व सकुशल बाहर निकाल लाए। समिति के संगठन मंत्री व संघ के फुलटाईमर सहदेव जी की मानें तो घटना के महज़ एक घंटे के भीतर दहिसर से लेकर जोगेश्वरी तक के करीब 350 स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंच गए। अफरा-तफरी में करीब 70 बच्चे लापता थे। स्वयंसेवकों ने इन बच्चों को खोज कर उन्हें उनके माता-पिता को सौंपा।
अग्निकांड में 2 मौतें हुई, जबकि कुल 1250 परिवार उजड़ गए। आग बुझी, तो पीड़ितों की व्यवस्था लोखंडवाला मैदान में तम्बू लगा कर की गई। मगर लोग राख हो चुके अपने घरों के नज़दीक से उठनें को तैयार ही न थे, ताकि प्रशासनिक मुआवजा सूची में उनका नाम चढ़ने से कहीं रह ना जाए। संघ ने पांच दिनों तक व्यापक राहत कार्य चलाया। कुल 35 लाख की धनराशि स्वयंसेवकों के प्रयासों से जमा हुई। पीड़ितों को भोजन सामग्री समेत गृह उपयोगी किट्स वितरित की गईं। उन दिनों वहॉ नगर मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात प्रशांति माने बताती हैं कि स्वयंसेवकों का साहस अभूतपूर्व था! प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा पहुंचाने तक में स्वयंसेवकों की मदद ली।
शशिभूषण जी बताते हैं कि बस्ती व आसपास ही नहीं समूची मुंबई से लोगों ने स्वयंसेवकों को आर्थिक सहयोग किया। सबसे अद्भुत दान था एक गरीब वृध्दा का जिसने अपनी फटी पोटली में बचे आखिरी चावल भी पीड़ितों के लिए दे दिए।
- वास्तव में दामूनगर में लगी आग प्रचंड थी, मगर स्वयंसेवकों के सेवा सर्मपण के समक्ष उसकी प्रचंडता भी हार गई और हज़ारों लोगों की जीवन रक्षा हो सकी।
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