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श्याम परांडे | मध्य प्रदेश
50 के दशक में शुगर टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की डिग्री
, हिंदुस्तान
एयरक्राफ्ट लिमिटेड का ज्वाइनिंग लैटर 23 बरस
के एक युवक के लिए करियर की शुरुआत इससे
बेहतर और क्या हो सकती थी| पर शायद बैंगलौर
से 90 किलोमीटर
दूर अक्कीरामपुर के संभ्रांत राजौरिया परिवार की सातवी संतान
विष्णु के सपने सारे संसार से अलग थे, वो
झुग्गियों में बसने वाले साधनहीन लोगों का जीवन संवारना चाहता था वो सडकों पर फेंक
दिए जाने वाले अवांछित शिशुओं को एक सम्मान जनक जीवन देना चाहता था, इसिलए 1962
में विष्णु राजौरिया ने जब अपने पिता “श्री अनंत राजौरिया” से संघ
का प्रचारक निकलने की इजाजत मांगी थी तभी वे समझ गए थे कि उनका बेटा अब
कभी घर नहीं लौटेगा |
दक्षिण भारत की धरती पर जन्म लेकर उत्तर भारत में दिल्ली से लेकर भोपाल तक सेवा कार्यों की विशाल श्रृंखला खड़ी करने वाले विष्णु जी को उम्र के अन्तिम दशक में सेवा का पर्याय माना जाने लगा था| गरीबों को दवा नहीं मिलती, यदि मिलती है तो बदले में एक दिन की दिहाड़ी जाती है, विष्णुजी के मन की इसी वेदना ने दिल्ली में पहली मोबाइल मेडिकल वैन को जन्म दिया व आज देशभर में सेवा भारती के माध्यम से सैंकड़ों मोबाइल मेडिकल वैन मलिन बस्तियों में जाकर फ्री दवाईयां व् फर्स्ट ऐड ट्रीटमेंट दे रही है| सड़क पर फेंक दिए जाने वाले अवांछित निर्दोष शिशुओं को सम्मानजनक जीवन देने के लिए उनकी प्रेरणा से पहले दिल्ली में फिर भोपाल में मातृछाया की शुरुआत हुई आज देश भर में लगभग 36 मातृछाया प्रकल्प के माध्यम से सैंकड़ों अनाथ बच्चों को माता पिता की गोद मिली व् नि:सन्तान दम्पतियों को बच्चों का सुख|
इसी तरह बस्ती के युवाओं के लिए रोजगार प्रशिक्षण केंद्र, महिलाओं के सिलाई व् कढ़ाई केंद्र और बच्चों के लिए संस्कार केंद्र खोले गए, जब विष्णुजी दिल्ली से मध्य प्रदेश पहुंचे तब वहां लोग उनसे जुड़ते चले गए जिसके फलस्वरूप मध्य प्रदेश के कोने कोने में सेवा के प्रकल्प खड़े होते चले गए| “मध्य क्षेत्र के क्षेत्रसेवाप्रमुख गोरेलाल बारचे जी” बताते हैं की गुरूजी (वहां भी लोग उन्हें गुरूजी कहा करते थे) की प्रेरणा से मध्य प्रदेश में 21 छात्रावास 6 मातृछाया सहित 400 सेवा कार्य शुरु हुए | जब विष्णु जी कानपुर से दिल्ली पहुंचे, तब संघ की तरफ से निर्देश था कि वंचित वर्गों के लिए काम शुरू करना है, जब तक इसके लिए कोई योजना बनती, वे स्वयं फुटपाथ पर पेड़ के नीचे टाट की बोरी बिछाकर एक बच्चे को पढ़ाने लगे| विष्णुजी को पढ़ाते देखकर जो सज्जन उनके लिए कुर्सी लेकर आये, बाद में उन्हीं लाला सिंह राम गुप्ता के आर्थिक सहयोग से आज दिल्ली में सावन पार्क इलाके में निर्धन मेधावी बच्चों के लिए तिमंजिला छात्रावास बना जिसमें आजकल दिल्ली सेवा भारती के माध्यम से कई प्रकल्प चल रहे हैं। कहा जाता है, विष्णुजी के 5 फीट के दुबले पतले शरीर में एक विराट व्यक्तित्व समाया था जिससे प्रभावित होकर किसी ने तन दिया, कोई मन से जुड़ा और कईयों ने तो अपना जीवन सेवा को समर्पित कर दिया।
यदि विष्णु को समझना है तो भैया जी जोशी के इन शब्दों में समझा जा सकता है,संघ के सरकार्यवाह भैया जी जोशी कहते हैं कि–“विष्णु जी साधनों के लिए रुके नहीं, सहयोग के अभाव में थके नहीं परिस्थितियों के समक्ष झुके नहीं” |
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