सब्‍सक्राईब करें

क्या आप ईमेल पर नियमित कहानियां प्राप्त करना चाहेंगे?

नियमित अपडेट के लिए सब्‍सक्राईब करें।

4 mins read

मिला संघ का साथ , तो बन गई गणित से बिगड़ी बात

विजयलक्ष्‍मी सिंह | अरुणाचल प्रदेश

Play podcast

वीडियो देखिये

parivartan-img

सुदूर चीन बॉर्डर स्थित बर्फ से ढके तवांग से 56 कि.मी. दूर, 8000 फीट की दुर्गम ऊँचाई पर एक स्थान है- बोमदिला। महाराष्ट्र से अरूणाचल में संघ प्रचारक बनकर आए, राजेश राठौर जी जब यहां के बस अड्डे पर उतरे, उन्हें एक अजीब मंजर दिखा। आसपास, 70 से अधिक किशोरवय लड़के-लड़कियां समूहों  में हैरान परेशान बैठे थे। इनमे कुछ लड़कियां तो .......रो भी रहीं थींराजेश राठौर जी ये जान अवाक.. रह गए कि इन सभी के चेहरे गणित विषय में फेल हो जाने के चलते मुरझाये हुए थे। अकेले बोमदिला में 300 स्टूडेंट्स गणित में फेल थे!! चिंता की बात यह थी कि, ये सब अब पढ़ाई छोड़ने का मन बना चुके थे। गणित के  डर की वजह से इतने सारे युवा भविष्य बरबाद होने की कगार पर थे- इस वेदना ने अरूणाचल सेवा भारती को सेवा की नई  राह दिखाई। 



 

इन बच्चों के मन से गणित का डर निकालने के लिए 70 दिनों का एक ऐसा क्रेश-कोर्स डिज़ाइन किया गया, जिससे इस सीमित अवधि में स्टूडेंट्स का मैथ्स सिलेबस पूरा करवाया जा सके। सेवाभावी समर्पित युवा स्वयंसेवकों ने सुदूर गांवों में जाकर पूरे मनोयोग से इन बच्चों को कक्षाएँ लगा रोचक और सरल ढंग से गणित पढ़ाना प्रारम्भ किया। 2009 में शुरू हुए इस अनूठे प्रयोग के कारण यहाँ बच्चों का गणित के प्रति सिर्फ भय दूर हुआ, बल्कि अब तक इस इलाके के 8000 विद्यार्थी अच्छे अंको से 12 वीं कक्षा में पासआउट  होकर उच्च शिक्षा की ओर बढ़ गए। इनमे से कई तो आज अच्छे पदों पर हैं।

 

पूर्वोत्तर की दुर्गम जीवन परिस्थितियों की कल्पना भी हमारे लिए मुश्किल है। बोमदिला जैसे कितने ही गांव है, जहाँ 12 महीने हाड कंपाने वाली ठंड और वर्ष के सात माह बारिश के चलते सिर्फ पेड़-पौधे गल जाते हैं, बल्कि चावल अन्य खाध भी उपजाना मुश्किल होता है। छोटी-मोटी चीज खरीदने भी दुर्गम चढ़ाई तय करनी पड़ती है। बाँस के घरों में बुखारी (अंगीठी ) के ताप के सहारे दुर्घष जीवन जीते, इन लोगों के बच्चों के लिए सरकार ने स्कूल तो खोले, पर वहाँ कभी टीचर नहीं आते, तो कभी विद्यार्थी। इन जटिल हालातों में अरूणाचल सेवाभारती ने इन बच्चों को पढ़ाने इनमें आत्मविश्वास  जगाने का बीड़ा उठाया।

 

बी.टेक करने के बाद एक सेवाभावी युवक  जब पहली बार, पूना से नौकरी से 40 दिन छुट्टी लेकर बोमदिला इन बच्चों को गणित का क्रेश-कोर्स करवाने आया तब वो भी  नहीं जानता था  कि एक दिन यही कार्य उनके जीवन का लक्ष्य बन जाएगा। वर्ष 2009 से नौकरी छोड़कर संघ का ये समर्पित स्वयमसेवक  अरूणाचल के सुदूरवर्ती गांवों  में गणित पढ़ा रहा है। हर वर्ष 5 या 8 जगहों पर  कक्षाएं चला 70 दिन में गणित सिलेबस  पूरा करवाया जा रहा है।  सेवाभारती के आह्वान पर  कुछ सेवाभावी युवा 6 माह से सालभर का समय निकालकर यहाँ पढ़ाने आते हैं।


पुणे से आर्किटैक्चर की डिग्री लेने के बाद हर्षदा, बायो मेडिकल इंजीनियरिंग पूरी कर राधिका एमएससी के बाद स्नेहा जैसी युवतियो ने अरूणाचल में रहकर 6 माह तक इन बच्चों को पढ़ाया। अब तो अंग्रेजी ग्रामर ए.पी.एस.सी की परीक्षा गाईडेंस के लिए कई सेवाभावी युवा यहां समय दे रहे हैं। सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल की इजाजत से चलने वाले इस कोर्स में विद्यार्थियों को सुसंस्कृत देशभक्त नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित किया जाता है। सप्ताह में एक बार  देशभक्ति गीत गायन होता है  और महापुरुषों की कहानियों भी सुनाई जाती हैं। समय-समय पर संगठन की ओर से कैरियर काउंसलिंग शिविर भी आर्गेनाईज किए जाते हैं। इनमें जाने-माने सफल व्यक्ति गाइडेन्स  के लिए आमंत्रित किए जाते हैं


सेवाभारती अरूणाचल के साथ पुणे की ज्ञानप्रबोधिनी संस्था भी इस कार्य में सहयोग कर रही हैं हर्षदा स्नेहा जैसी युवतियों के अलावा अब तक 450 सेवाभावी उच्च शिक्षित युवाअरुणाचल आकर बस्ती-बस्ती में विज्ञान के प्रयोग करके भी दिखा रहे हैं, ताकि इस दुर्गम पर्वतीय इलाके में ज्ञान-विज्ञान और तकनीक का  प्रसार हो सके

 

कान्टैक्ट नंबर

शेखर केलकर-9436838330

1138 Views
अगली कहानी