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अपर्णा सप्रे | मध्यप्रदेश | मध्य प्रदेश
चारों ओर रंग ही रंग बिखरे थे, पीले,नीले, लाल,धानी। इन रंगो से सराबोर हाथों में नन्हीं पिचकारी लिए बालगोपाल, यशोदाओं के साथ ,होली का आनंद उठा रहे थे। यूं लग रहा था, सारे जहाँ की खुशियां आज मातृछाया के आंगन में सिमट गई थीं। तभी इन बच्चों के साथ होली मनाने आई सेवाभारती मातृमंडल की बहनों की नजर दरवाजे पर रखे लावारिस बैग पर पडी। कहीं इसमें कोई बम तो नहीं इस आशंका से सामना होते ही, इनमें से एक ने अपनी जान की बाजी लगाकर बैग को परिसर से दूर फेंकने के लिए दौड़ना शुरू ही किया था कि बैग के अंदर से एक मासूम के रोने की आवाज सुनकर सबके कदम ठिठक गए। ये क्या, उस सस्पैक्टेड बैग में तो किसी बेबस माँ की न्नहीं सी जान थी। दो दिन की ये नन्हीं परी साथ में दूध की बोतल लिए थी।
होली की खुशी अब सबके लिए दुगुनी हो गई थी, मातृछाया के इस अनूठे परिवार में एक नया सदस्य जो जुड़ गया था। भोपाल में सेवाभारती द्वारा निराश्रित बच्चो के लिए चलाए जा रहे इस शिशुगृह में आयी ये बच्ची अब वहां थी, जहाँ से उसे नया जीवन मिलना था । संघ के प्रचारक व सेवाभारती के जनक स्वर्गीय विष्णुजी की प्रेरणा से 1997 में शुरू हुआ यह प्रकल्प मध्यप्रदेश का पहला मान्यता प्राप्त इंटरनेशनल एडाप्शन सेंटर है। आंकड़ो के लिहाज से सेंटर में आनेवाले 400 बच्चों में से 350 बच्चे अब देश के विभिन्न हिस्सों में अपने अपने घरों में सुखी व संपन्न जीवन जी रहे हैं। यहाँ हर बच्चे की देखभाल के लिए यशोदाएं (आया) हैं जो समर्पित भाव से इनकी हर जरूरत को पूरा करती है। सेंटर में रहने वाले लोग हों या फिर सेवाभारती मातृमंडल की की बहनें सब इन बच्चों से रिश्तों की डोर से बंधे है। कोई इनकी चाची है तो कोई बुआ तो कोई मासी।
अपने जीवन के पंद्रह बरस मातृछाया को देने वाले पाँचखेड़े दंपत्ति जब तक यहां रहे, बच्चों के आई बाबा बनकर रहे। सुधाताई पाँचखेड़े की मानें तो वे दोनो इन बच्चों के मोह में बँध से गए थे। जब भी किसी बच्चे को गोद लेने उसका परिवार आता था यह उनके लिए ये बड़े ही कठिन पल होते थे, जहाँ एक ओर इन बच्चों के सुनहरे भविष्य की कल्पना खुशी देती थी व दूसरी ओर इनसे बिछुड़ने के गम में पलकें भींग जाती थीं। सुधाताई अपनी यादें साझा करते हुए बताती हैं कि तीन बरस का अविनाश जब अपने माता-पिता के साथ आस्ट्रेलिया जाने वाला था तो उसकी खुशी का ठिकाना न था वो हर बच्चे को अपने कमरे के फोटो दिखा रहा था जो उसके लिए पहले से सजाकर रखा गया था। अब बात करते है कावेरी की, इसने तो अपने माता-पिता को स्पेनिश में नमस्कार कर हैरान कर दिया था। कावेरी स्पेन में सहज हो सके इसलिए एडाप्शन की प्रक्रिया शुरू होने तक, पाँच साल की इस बच्ची को दो माह से स्पेनिश सिखाई जा रही थी।अतीत के पन्ने पलटें तो मातृछाया प्रबंधन को आज भी वो रात याद है ,जब हमीदिया अस्पताल के कूड़ेदान से दो दिन के अविनाश को यहाँ लाया गया था, कितने जतन के बाद तो इस प्रीमैच्योर बच्चे की जान बचाई जा सकी थी।
मध्यप्रदेश का पहला लीगल एडाप्शन सेंटर मातृछाया एक शिशुगृह ही नहीं वो परिवार है जहां हिंदू संस्कृति के मुताबिक बच्चे के सारे संस्कार पूरे किए जाते है। बच्चे के अन्नप्राशन से लेकर कर्णछेदन व नामकरण के संस्कार यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। सुरक्षा के लिहाज से परिसर में हर जगह सीसी टीवी कैमरे हैं। मातृछाया समिति की उपाध्यक्ष व सेवाभारती की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमिता जैन बताती हैं , कि यहाँ बच्चों की सभी तरह की जरूरतों का पूरा -पूरा ध्यान रखा जाता है। छोटे बच्चों की नियमित दोनों समय मालिश होती है व उन्हें उचित पोषण आहार दिया जाता है, वहीं ब़ड़े बच्चों को स्कूल के बाद पढ़ाने के लिए टीचर रखी गई है। शाम के समय इन्हें ड्राईंग, कार्ड मेकिंग व कभी -कभी संगीत भी सिखाया जाता है। यहां आने वाले डिसेबल बच्चों की भी हर जरूरत को पूरा किया जाता है।
बच्चों के साथ हर त्योहार मनाने सेवाभारती परिवार मातृछाया के आंगन मे पहुँचता है। महीने में एक बार बच्चों को शहर में कभी चिड़ियाघर कभी म्यूजियम तो कभी शाँपिंग मांल हर जगह घुमाया जाता है। यहां से जाने के बाद भी हर बच्चे का फालोअप समिति के पदाधिकारी करते है। जिनका सूना आंगन अब यहां के बच्चों की किलकारियों से गूंज रहा वे सभी पैरैंट्स मातृछाया से आज भी यूं जुड़े है मानो ये उनका भी परिवार हो, बच्चों की हर सफलता को वो यहां के प्रबंधन से शेयर करते है। यहां बाहर लगे पालने में हर शिशु का स्वागत है फिर भी कुछ लोग क्यों बच्चों को परिसर मे कभी झाड़ियों में तो कभी किसी बैग में डालकर बच्चों को छोड़ जाते जिससे कभी-कभी बच्चे की जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है मातृछाया परिवार का ये प्रश्न समाज की बहुत बड़ी विसंगति है।
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