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जैविक खेती ने कर्नाटक में बदली किसानों की तकदीर

विजयलक्ष्‍मी सिंह | कर्नाटक | कर्नाटक

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यदि खेती का तरीका  बदल दिया जाए व बाजार से  बिचौलिए खत्म कर दें, तो छोटे व मझोले किसान भी अच्छा खासा कमा सकते हैं। इस बात को अपने प्रयोगों से सही साबित कर दिखाया है कर्नाटक में सावयव कृषि परिवार ने। आईए मिलते हैं एक साधारण किसान चंद्रप्रकाश से, तुमकर जिले के छोटे से गांव बिलगेरेपाल्या का यह किसान हाड़तोड़ परिश्रम कर भी मुश्किल से गुजारे लायक कमा पाता था। अपने खेत में होने वाली रागी  की जिस फसल के 1 क्विंटल के उसे महज ढाई हजार रुपए मिलते थे, आज उसी 1 क्विंटल रागी के अब उसे 22,500 रूपए मिलते हैं।  




चंद्रप्रकाश जैसे हजारों किसानों की कमाई में जबरदस्त वैल्यू एडिशन को अंजाम दिया है कृषि प्रयोग  परिवार ने। संघ के वरिष्ठ प्रचारक उपेंद्र शिनॉय की प्रेरणा से एक समृद्ध किसान पुरूषोत्तम राव के प्रयासों से 1990 में शुरू हुई यह संस्था जैविक खेती के क्षेत्र में विश्व का सबसे बडा संघठन है। कर्नाटक प्रांत के 175 तालुका में 15000 से अधिक किसानों को संस्था ने जैविक खेती से जोड़कर गरीबी के दलदल से बाहर निकाला है। यह संस्था मूलतः जैविक किसान संघों का संघ है जिसने किसानों को जैविक खेती करने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया उनके उत्पादों की मार्केटिंग भी की है।

संस्था के पूर्णकालिक कार्यकर्ता  व संघ के स्वयंसेवक आनंद जी की मानें तो किसानों की दशा सुधारने के लिए जैविक खाद निर्माण, बायोगैस का उपयोग, मधुमक्खी पालन, गोमूत्र  व गोबर का व्यवसायिक उपयोग करने के लिए ट्रेनिंग दी गई। इतना ही नहीं कृषक ग्राहक मिलन के नाम से माह में दो बार लगने वाले मेले में  किसानों को अपने उत्पादों को बेचने की सुविधा भी दी जाती है। कभी खेती छोड़कर मजदूरी करने का मन बना चुके मलयर श्रानप्पा अब जैविक खेती से उपजी सब्जियों को सीधे आऊटलेट में बेचकर सालाना 4.50लाख रू तक  कमा लेते हैं। वैल्लारी जिले के हुलीकरई गांव के इस किसान का जीवन तब बदल गया जब उसने एस के पी की सदस्यता ली। वे बताते  हैं तालुका स्तर पर लगने वाले इन मेलों से हर माह 20 लाख रूं से अधिक उत्पादों की बिक्री की जाती है। 




छोटे-छोटे प्रयोगों से बड़ी- बडी सफलताएं मिली। कभी 80 रूपए लीटर में देसी गाय का दूध बेचने वाले किसानों ने उसी दूध से घी बनाकर 2000 रूपए किलो बेचना शुरू किया, वहीं इनके परिवारों की महिलाओं ने आर्गेनिक कुमकुम बनाने की ट्रेनिंग ली जिसकी मार्केट में अच्छी-खासी डिमांड है। किसी ने खेती के साथ मधुमक्खी पालन शुरू किया तो कुछ किसानों ने गोबर बेचकर भी धन कमाया। किसानों को अच्छे बीज मिलें, बंजर हो रही जमीन  उर्वर बने, किसान जल-संरक्षण को अपनाकर सिंचाई के लिए आत्मनिर्भर बनें व जैविक खेती को आसान बनाएं, संस्था ने इन सारी फील्डस में किसानों को ट्रेनिंग दी। भारत में जहां हर  2 घंटे 15 मिनिट पर एक किसान आत्महत्या करता है वहां कृषि प्रयोग परिवारों ने किसानों को जीने की नई राह दिखाई है। संस्था की सभी गतिविधियों को बैंगलूरू की राष्ट्रोत्थान परिषद व यूथ फार सेवा का पूरा सहयोग मिलता है।

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