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अब अपना गांव नहीं छोड़ना पड़ेगा| डॉ० हेडगेवार सेवा समिति ने बदली नंदूरबार महाराष्ट्र की तस्वीर

विवेक अस्थाना | नंदूरबार | महाराष्ट्र

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खेती से अब गुजारा मुश्किल है, बच्चों का पेट नही भर सकते! अब अपना गांव छोड़कर कमाने के लिए शहर जाना ही पड़ेगा….यह कहानी किसी एक किसान की नहीं महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के सैंकड़ों किसानों के जीवन की कड़वी सच्चाई थी। पांच हजार पैंतीस किलोमीटर में फैले 67% जनजाति जनसंख्या वाले नंदूरबार में किसान भूखे मरने पर मजबूर थे। पर अब अपने बुरे दिनों से बाहर निकल कर यह शनै: शनै: विकास के पथ पर दौड़ रहे हैं।





गरीबी और कुपोषण को धीरे धीरे ही सही लेकिन जनजाति समाज ने पीछे हटाना सीख लिया है। और यह सब संभव हुआ डॉक्टर हेडगेवार सेवा समिति के अथक प्रयासों से। समिति ने खेती के तरीके में बदलाव कर व किसानों को प्रशिक्षित कर न सिर्फ उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकालने का यशस्वी प्रयास किया बल्कि उनके बच्चों को भी पढ़ाया। डॉ. गजानन डांगे, ललित बाल कृष्ण पाठक, रंगनाथ रुंझझि, नवले जैसे स्वयंसेवकों के प्रयासों से 27 बरस पहले गठित हुई समिति ने 30 गांव गोद लेकर वहां की दशा व दिशा बदल दी।  कभी महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े जिलों में आने वाले नवापुर तहसील के खांडबारा विकासखंड के 8 गांव में नाबार्ड के एक प्रोजेक्ट के जरिए सेवा समिति ने काम करना शुरू किया। छोटे 500 किसानों से आम और आंवले के पेड़ लगावाये गए।




राष्ट्रीय नवोन्मेषी प्रकल्प के एक प्रोजेक्ट के माध्यम से एक दूसरे के कुँए से पानी साझा करना सिखाया गया। इतना ही नहीं खेतों में मिट्टी का कटाव रोकने के लिए फॉर्म बंडिंग की गई जिसमें खेतों के ढालू मुहानों पर गहरे गड्ढे खोद पानी और मिट्टी के बहाव को रोका गया। किसानों के बच्चों को पढ़ाने के लिए समिति दसवीं तक का रहवासी स्कूल चला रही है। अभी 500 जनजातीय बच्चे यहां अपने सुनहरे भविष्य की तस्वीर गढ़ रहे हैं।





पानी के लिए सरकार की राह देखने के बजाय समिति ने किसानों को खुद मेहनत कर बांध बनाने की प्रेरणा दी। नेसु नदी के पानी पर छोटे-छोटे बांध बनाकर आठ गांव के किसानों ने नदी के पानी से अपने खेत सींचे। समिति के सचिव और पूर्व जिला कार्यवाह नितिन जी बताते हैं कि हर साल इसी नदी के किनारे दशहरे के अगले दिन नदी पूजन का कार्यक्रम होता है। जिसमें सैंकड़ो गांववाले भाग लेते हैं। अब तो सरकार ने यहां 17 पक्के बांध भी बनाये है। समिति ने किसानों की छोटी छोटी आवश्यकताओं की चिंता कर उन्हे पूरा करने का काम बखूबी किया। उन्होंने देखा कि धान का छिलका निकालने के लिए किसानों को गुजरात जाना पड़ता है। इसमें काफी अधिक पैसा, श्रम और समय लग जाता है। इसलिए गांव में ही छिलका निकालने के लिए 13 गाँवों में 13 धान मिलें खोली एवम उसका पैसा भी किसानों को सुविधा अनुसार चुकाने की छूट दी गई।





मजदूरी कर पेट पालने वालों को कुपोषण से बचाने के लिए घरों में सब्जी की खेती करना सिखाया गया। एक ही फसल होने से मिट्टी का कटाव काफी बड़े पैमाने पर होता था। इसके लिए गुंथो मे भी सब्जी उगाई गई व क्राप कैलैंडर बनाए। आईए मिलते हैं टेटीबाई कुशल पावरा से! इस महिला को एन.आई.सी.आर.ए ने सबसे बढ़िया सब्जी बेचने के लिए पुरस्कृत किया उन्हें ट्रेनिंग समिति के सहयोग से चल रहे कृषि विज्ञान केंद्र में मिली है।

पश्चिम क्षेत्र के क्षेत्र सेवाप्रमुख उपेंद्र कुलकर्णी जी कि मानें तो यह किसानों के स्थानांतरण व आत्महत्या के खिलाफ समिति की जंग थी जिसे इन 12गांवो में काफी हद तक विजय मिली है।


सम्पर्क : डॉ नितिन पंचभाई

         8888085005

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