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विजयलक्ष्मी सिंह | उत्तराखंड
केदारघाटी में आया जलप्रलय शायद ही कोई भूला होगा। जीवन देने वाले जल को प्रलय बनकर कहर ढाते, लाशों की दुर्गंध के बीच मानवता को कराहते, तीर्थयात्रियों की बेबसी पर अलकनंदा को मौन आँसू बहाते, हम सबने अपने –अपने घरों में टीवी चैनलों पर देखा। परंतु हम में से किसी ने मानवता का वो रूप नहीं देखा जो इन कठिन पलों में यात्रियों का सबसे बडा सहारा बना। आपदा की घड़ी में, बरसते पानी में, मलबा बन चुकी सड़कों पर, जानलेवा रस्तों से गुजरते रात दिन सेवाकार्य में जुटे रहे संघ के स्वयमसेवक। केदारघाटी पर पहला हैलीपेड बनाने से आपदा में अनाथ हुए बच्चों की पढाई की व्यवस्था तक संघकार्य आज भी चल रहा है।
आपमें से किसी ने योगेंद्र व बृजमोहन बिष्ट का नाम नहीं सुना होगा, संघ के इन दो स्वयंसेवकों ने सेना व वायुसेना के पहुँचने से पहले ही प्राइवेट हैलीकाप्टर से यात्रियों को सुरक्षित निकालना शुरू कर दिया था। 16 व 17 जून की भीषण बारिश ने सब–कुछ तहस नहस कर दिया था, ऐसे में हैलीकाप्टर उतारने के लिए हैलीपेड कहाँ मिलता। तब अपनी जान की परवाह किए बगैर इन साहसी युवकों ने पैराशूट से कूदकर पहला हैलीपेड बनाया, बाद में रामबाड़ा, केदारनाथ मंदिर के पीछे और जंगल चट्टी में भी इन्हीं ने सेना की टीम की मदद से हेलीपैड बनाए। इतना ही नहीं तुरंत रामबाड़ा, घोड़ापड़ाव, व गौरीकुँड में फंसे यात्रियों को हैलीकाप्टर से निकालने का काम भी शुरू कर दिया, कहीं कहीं तो इन्हें 50 फीट ऊँचाई से रस्सी के जरिए नीचे उतरकर यात्रियों को बाहर निकालना पड़ा। यानी योगेंद्रं व बृजमोहन ने लोगों को बचाने के लिए वो सब किया जो सेना के ट्रेंड जवान कड़ी ट्रेंनिंग के बाद करते हैं। पिनेकल एवीएशन कंपनी के कर्मचारी इन युवा स्वयंसेवकों ने लोगों को जान से बचाने के लिए कंपनी के मना करने के बाद भी इस काम को जारी रखा व अपनी नौकरी तक दाँव पर लगा दी। अब बात करते हैं गणेश अगोड़ा की जिसने, एक हार्ट पेशेंट बुजुर्ग की जान बचाने के लिए उन्हें अपने कंधे पर बैठाकर मंजगाँव से मनेरी तक की 6 किलोमीटर की दूरी पैदल तय की। ऐसी कितनी कहानियाँ घाटी में तैरती रहीं व भुला दी गईं।
मुश्किल की हर घड़ी में यात्रियों के साथ कहीं सेवक, तो कहीं पालक बनकर खड़े रहे संघ के स्वयंसेवक। मनेरी सेवाश्रम, चंबा के दिखोल गाँव से लेकर ऊखीमठ के नजदीक बसे भ्योंडाँड तक के 68 गांवों में रिलीफ कैंपो से भोजन कपड़े बर्तन से लेकर हर जरूरत की चीज बाँटी गई। अकले मनेरी में 10,000 तीर्थयात्रियों ने भोजन किया। दिखोल में 20,000 लोगों को राहत सामग्री बाँटी गई। चमोली का सरस्वती शिशु मंदिर हो या मनेरी का सेवाश्रम दोनों जगहें कई दिनों तक रिलीफ कैंप बनी रहीं, यात्रियों से लेकर सेना के जवानों तक सबने यहाँ खाना खाया।
आपदा बीतते ही जहाँ शेष संगठनों ने वहाँ से बोरिया बिस्तर समेट लिया व सरकारी मदद की रफ्तार भी धीमी पड़ गई वहीं उत्तराखंड दैवीय आपदा समिति के जरिए संघ का कार्य जारी रहा। गौरीकुंड,रामबाड़ा,सोनारचट्टी ,सोनप्रयाग समेत समूची केदारघाटी में तबाही मच चुकी थी स्थानीय लोगों ने अपने घर-बार के साथ रोजगार भी खोया था। जीने की कोई राह नजर नहीं आ रही थी। तब समिति ने पुनर्वास का काम शुरू किया व अब तक कर रही हैं । समिति के संगठन मंत्री राजेश थपलियाल बताते हैं कि जलप्रलय में अनाथ हुए 6 से 12 साल के 200 बच्चों के लिए नैठवाड़, लक्षेश्वर, कोटीकाँलोनी व गुप्तकाशी में चार होस्टल चल रहे हैं। अभी भी कुछ गाँवों में बिजली नहीं लौटी है इन गाँवों में सोलर लैंप्स बाँटे गए हैं।
पीड़ित गाँवों के 100 गरीब बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए 1000 रूपए महीने की स्कालरशिप भी दी जा रही है। उषाड़ा,स्यानट्टी समेत आठ गाँवों में मेडिकेल सेंटर चलाए जा रहे हैं। तबाह हुए गाँवों की विधवाओं व बेरोजगार युवाओं के लिए सिलाई व कम्पयूटर सेंटर चलाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं बच्चों को पढ़ाने के लिए प्राईमरी लेवल पर 4 शिशुमंदिर व 8 बाल संस्कार केंद्र भी घाटी में चलाए जा रहे हैं। नारायण कोटि में 30 बेडेड हास्पीटल भी बन चुका है जहां आपदा के शिकार परिवारों का इलाज लगभग फ्री होता है। चार बरसों में सब इस जलप्रलय को भूल गए, पर समिति के जरिए स्वयंसेवक अब भी पुनर्वास के काम में लगे हुए हैं ।
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