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दक्षिण के सेनापति - यादवराव जोशी

तुशमुल मिश्रा | कर्नाटक

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ठिगने कद के, साधारण से दिखने वाले धुन के पक्के एक मराठी भाषी युवक ने अपने जिंदगी के 50 साल दक्षिण –भारत को दिए व इतिहास रच दिया। कर्नाटक में प्रचारक बनकर आने से पहले यादवराव जोशी ने शायद ही कभी कन्नड़ सुनी हो पर पूरा जीवन कन्नड भाषी लोगों के दिलों पर राज किया। उन्होंने अपने फालोअर्स बनाने की कोशिश कभी नहीं की सबकी सेवा के लिए हाथ बढ़ाए व लोग उनके पीछे चलते गए।


यादवरावजी की प्रेरणा से शुरू हुई राष्ट्रोत्थान परिषद, एक ओर जरूरतमंद मरीजों के लिए बैंगलौर का सबसे बड़ा ब्लड बैंक चलाती है जिसमें गरीब मरीजों को सबसे कम पैसे में खून मिलता है, तो दूसरी ओर झुग्गियों के बच्चों के लिए फ्री कोचिंग सेंटर चलाती है। केरल में छोटे –छोटे बच्चों को बालगोकुलम के जरिए भारत की संस्कृति से जोड़ने के प्रेरक भी यादवरावजी ही थे।




नागपुर में 3 सितंबर 1914 को अनंत चर्तुदशी के पर्व पर वेदपाठी परिवार में जन्में यादवरावजी का बचपन गरीबी व अभावों में बीता। जब कठिनाईयों को दूर करने के लिए धन कमाने का समय आया तब एम.ए व लॉ करने के बाद वे प्रचारक बनकर निकल गए। उन दिनों इतने पढ़े-लिखे लोग बहुत कम मिलते थे। यादवरावजी ने हर उस चीज का त्याग किया जो उन्हें नाम दे सकती थी। बाल भास्कर के रूप में जाने वाले यादवरावजी के गायन प्रतिभा का लोहा भीमसेन जोशी भी मानते थे। पर संघ कार्य के लिए उन्होंने संगीत से भी सन्यास ले लिया।


संघ की प्रार्थना नमस्ते सदा वत्सले को पहली बार गाने वाले जोशीजी पर गाँधी हत्या के लिए गोड़से को उकसाने का आरोप लगा तब व 1974 में दोनों बार संघ पर प्रतिवंध के समय वे जेल गए व हर बार दुगुनी ऊर्जा से संघकार्य में लग गए। दक्षिण के सेनापति कहे जाने वाले जोशीजी ने तमिलनाडू, केरल , कर्नाटक व आँध्रप्रदेश में संघकार्य की नींव रखी व सेवा को संघ के काम में शामिल किया।




सेवाव्रती ट्रेंड/प्रशिक्षित भी किए जा सकते हैं यादवरावजी की इस सोच ने बैंगलौर में हिंदू सेवा प्रतिष्ठान को जन्म दिया। प्रतिष्ठान ने युवा लड़के लड़कियों को सोशल सर्विस की ट्रेनिंग देकर तीन साल इंटीरियर गाँवों में सेवा करने भेजा। अब तक संस्था के जरिए 5000 से अधिक सेवाव्रती ट्रेंड किए जा चुके हैं, जिनमें से कईयों ने अपना जीवन इसी कार्य के लिए समर्पित कर दिया। स्‍वयं जीवन भर बेहद सादगी भरा जीवन जीकर, अंतिम साँस तक देश व समाज के लिए कार्य करने वाले यादवरावजी संघ के पहले अघोषित अखिल भारतीय सेवाप्रमुख थे, जिन्होंने सेवाविभाग की रचना से पहले से संघ को सेवा से जोड़ा।


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