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साथी हाथ बढाना-विवेकानंद सेवा मंडल

विजयलक्ष्‍मी सिंह | डोंबिवली | महाराष्ट्र

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सपनों के शहर मुंबई में जिंदगी भी लोकल ट्रेन की तरह दौडती रहती है। किंतु अपने सपने पूरा करने के लिए आगे बढ़ने की इस होड़ में कुछ युवा ऐसे भी थे, जिन्होंने पीछे छूट गए लोगों का हाथ थामकर उन्हें आगे बढाया। उच्च शिक्षित युवाओं के पढ़ाई के बाद बस कमाई के इस मिथक को तोड़ा विवेकानंद सेवा मंडल के युवाओं ने। महाराष्ट्र के डोंबिवली शहर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे छात्रों ने जरूरतमंद विद्यार्थियों की मदद करने के लिए  वर्ष 1991 में एक छोटी सी लाइब्रेरी से इस कार्य की शुरुआत की। संघ के प्रखर स्वयंसेवक विष्णु गजानन देवस्थली व प्रोफेसर सुरेश नाखरे की प्रेरणा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे 15 छात्रों के साथ इस मंडल की स्थापना हुई।




ये युवा हर शनिवार एवं रविवार के दिन डोंबिवली महानगरपालिका के राजकीय विद्यालयों में जाकर बच्चों को विज्ञान एवं गणित पढ़ाते हैं। पहले 18 वर्ष लगातार गांव के बच्चों के बीच जाकर उन्हें पढ़ाते रहे। केतन बोन्द्रे, शैलेश निपुनगे, विनोद देशपाण्डे, रविंद्र वारंग, प्रग्नेश लोड़ाया, तृप्ति देसाई, सायली काटकर, सोनल भावसार, अनिकेत गांधी एवं नंदकुमार पाल्कर समेत 40 युवा इंजीनियर्स के इस मंडल ने ठाणे जिले के शाहपुर तालुका में बसे वनवासी गांव विही को गोद लेकर कई वर्ष लगातार वहां शिक्षा, स्वास्थ्य व स्वावलंबन के क्षेत्र में काम किया।




एक छोटी सी खोली में अपने माता पिता व भाई बहनों के साथ रहने वाले सुनील कुलकर्णी ( परिवर्तित नाम) के पास न तो पढ़ने की जगह थी न ही किताबें खरीदने की क्षमता। फिर भी वह इंजीनियर बनना चाहते थे। मंडल द्वारा चलाए जा रहे ज्ञान मंदिर ग्रंथालय से इंजीनियरिंग की महंगी-महंगी पुस्तकें व प्रातः 7 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुले रहने वाले रीडिंग रूम  में पढ़ने की जगह मिली व फीस भरने में भी मंडल के युवाओं ने उनका सहयोग किया।आज टीसीएस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में सालाना 22 लाख के पैकेज पर काम कर रहे सुनील अब स्वयं मंडल से जुड़कर अन्य विद्यार्थियों की सफलता का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। बाल्यकाल से संघ के स्वयंसेवक व विवेकानंद सेवा मंडल के अध्यक्ष केतन बोंद्रे बताते हैं कि- मात्र 30 पुस्तकों से किराए के गोदाम में शुरू हुई इस लाइब्रेरी में आज 8000 से अधिक पुस्तकें व 100 विद्यार्थियों के लिए पढ़ने की व्यवस्था है। इन 22 वर्षों में  डोंबिवली व आसपास के तबके के 10 हजार से अधिक इंजीनियरों ने इस लाइब्रेरी का लाभ उठाया है।





अब बात करते हैं विही गांव की। थाने जिले के शाहपुर तालुका में बसा वनवासी गांव विही आज से 20 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े गांवों में से एक था। यहां युवाओं ने निरंतर मेडिकल कैंप कर स्वास्थ्य का स्तर सुधारा व गांव वालों के सहयोग से वर्षा के पानी के संचय की शुरुआत कर तीन चेक डेम भी बनाए। इतना ही नहीं किसानों  को जैविक खेती का प्रशिक्षण देकर उनकी आय बढ़ाने में मदद की। वनवासी महिलाएं भी अपने पैरों पर खडी हो सकें इसलिए स्वंय सहायता ग्रुप बनाकर उन्हें रोजगार से जोड़ा गया। महाराष्ट्र में दिवाली में लगाए जाने वाले परंपरागत उबटन बनाने का काम सीखकर इन्होनें गत् वर्ष 50 हजार पैकेट डोंबिवली क्षेत्र में बेचे। कच्चे माल की खरीदारी से लेकर पैकेजिंग का कार्य महिलाओं ने स्वयं ही किया,मण्डल ने तो केवल उन्हें बाजार उपलब्ध कराया। जब मंडल ने यहां काम शुरू किया था तो दसवीं पास भी विद्यार्थी मिलना मुश्किल था आज प्रकाश कवठे, यशवंत, व्रिंदा, कौशल्या समेत वनवासी परिवारों  के अनेक  बच्चे आज ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट होकर नौकरी कर रहे हैं।


कहते हैं ईश्वर के कार्य में सहयोगी मिल जाते हैं।भाजपा सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे जब मंडल का कार्य देखने विही गांव पहुंचे तो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस गांव को गोद ले लिया। व सांसद निधि से सहयोग करके विही गांव का कायाकल्प कर दिया।




मण्डल ने लगातार तीन वर्ष तक निर्धन मेधावी बच्चों के लिए एसएससी की कोचिंग भी न्यूनतम शुल्क में उपलब्ध कराई। संघ के स्वयंसेवक व नौकरी छोड़ कर विही गांव में एक वर्ष रहकर ग्राम विकास की नींव रखने वाले शैलेश निपुनगे बताते हैं कि मंडल ने कुछ वर्षों तक लगातार रोजगार मेले लगाकर युवाओं को सही कैरियर चुनने में मदद भी की।


संपर्क - केतन बोन्द्रे
संपर्क सूत्र- +91 98339 30032

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