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सृजन के अंकुर

रश्मि दाधीच | महाराष्ट्र

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वे जिनके स्वेदकणों से धरती पर सुनहरी फसलें लहलहाती हैं  जो अपने प्रेम सेवा व समर्पण से धरती को सींचते हैं, कोरोनाकाल में उनकी व्यथा को हम सभी भूल गए। विडंबना तो यह है कि अन्नदाता की झोली से ही बरकत सूख गई। खडी फसलें बाजारों तक नहीं पहुंच सकीं। रांची व उसके आसपास के गांवों में जमीन को जैविक खाद से पोषित कर,करीब 3 वर्ष इंतजार के बाद बड़े जतन, धैर्य और प्यार को सींचते किसानों को ऑर्गेनिक अनाज, फल, सब्जियों की पहली खेप मिली,परंतु सब्र का बांध  तब टूट गया,जब अचानक मुसीबत बनकर आए लॉकडाउन ने ग्राहकों और किसानों के बीच दीवार खड़ी कर दी। सपने देहरी पर दम तोड़ रहे थे और सब्जियां जानवरों का पेट भरने को मजबूर।



किसानों को उचित मूल्य और ग्राहकों को जहर मुक्त भोजन कि संतुष्टि मिले, इसी  ध्येय के अंतर्गत  रांची में संघ द्वारा प्रेरित "फैमिली फार्मर प्रोजेक्ट" से जुड़े इन किसानों की समस्या सुनी, राष्ट्रीय सेवा भारती की ट्रस्टी रमा पोपली दीदी व स्वयंसेवक सौरभ भैया ने। वे अपनी कार से भोर 4 बजे से सुबह 9 बजे तक लगातार 3 महीने तक इन  पहाड़ी आदिवासी क्षेत्रों के किसानों से,उचित कीमत पर सब्जियां  लेकर लाते और ताजी सब्जियां कॉलोनी के घरों तक पहुंचाते। वर्तमान में 3 ग्राम पंचायतों नवागढ, कुच्चू व बीसा के 12 गांवों के किसान और शहरों में 500 परिवार इस प्रोजेक्ट से लाभान्वित हो रहे हैं। 




प्रधानाचार्य रमा दीदी व सहयोगी शिक्षिकाओं की टीम ने  ऑनलाइन क्लासेज के बाद, रसायन मुक्त करेले के चिप्स, कटहल के चिप्स,टमाटर का पाउडर,करेले, कमरख, व जड़ी बूटियों की चटनियां,फलों के जैम-जेली जैसे कई सफल प्रयोग कर, इन उत्पादों को ग्राहकों की पसंद बनाया। आज किसानों के उत्पाद  बकायदा ब्रांडिंग के साथ  मार्केट में अपनी धाक जमाने को तैयार है, जो करोना काल में  सुनहरे भविष्य की नींव बनते दिखाई दे रहे हैं ।

किसानों के बाद अब चर्चा करते हैं बुनकरों की, जिनके लिए तो मानो समय के पहिए के आगे, साड़ियां पहाड़ बनकर खड़ी हो गई। इनकी मदद के लिए आगे आई सेवाभारती से संबद्ध  जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र की बहनें।  राष्ट्रीय सेवा भारती की दक्षिणी क्षेत्र की प्रभारी भानुमति दीदी बताती हैं कि जागृति महिला स्वावलंबन केंद्र की कविता कलिमने, विनीथा हट्टिकाटाग, प्रशांत पोटे, रेणुका ढेज ने लॉकडाउन से त्रस्त करीब 1000 बुनकर परिवारों की काउंसलिंग कर न सिर्फ उनका मनोबल बढ़ाया बल्कि अपनी कार्यकुशलता व सूझबुझ से लाकडाऊन में बुनकरों व बाजार के बीच की दूरी चंद मिनटों में समेट दी। साड़ी व्यवसाय के लिए ऑनलाइन "सेवाकार्ता वेबसाइट" शुरू कर इन्हें घर बैठे बाजार से जोड दिया। इस उद्योग में लगभग 50% महिला मजदूर काम करतीं है जिनसे इनके घर चलते है।  इतना ही नहीं कॆंद्र की बहनों ने एक लाख मास्क व पन्द्रह हजार राखियां तैयार की। 

वहीं दूसरी ओर केरल में बहनों ने कोरोनाकाल में बिगडते मानसिक स्वास्थ्य से लडने के लिए कमर कसी। सेवा भारती पुंजरानी परामर्श केंद्र के अंतर्गत, वहां 14 महिला मनोवैज्ञानिक सलाहकारों के नेतृत्व में 14 केंद्र चल रहे हैं। जो घरों में अवसाद, तनाव, घरेलू हिंसा और नशे की लत जैसी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर कर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक उचित परामर्श, ज्ञानवर्धक सलाह देकर, समाज के बेहतर निर्माण को प्रोत्साहन दे रहे हैं। 





 दिन हो या रात कभी नहीं रुकते, सेवा से भरे ह्रदय में जज्बात। देहरादून में 24 मार्च 2020 रात को 9.00 बजे जब मातृ मंडल की क्षेत्रीय संगठन मंत्री रीता गोयल को जब पता चला कि घर से तीन किलोमीटर दूर एक अर्ध निर्मित इमारत में  बिहारी मजदूरों के सात परिवार भूखे बैठे हैं। तो घर में रखा भोजन और राशन दो थैलों में भरकर  बेटे के साथ स्कूटी पर निकल पड़ी। कोई भूखा ना रह जाए,इस सोच की रोशनी के आगे अंधेरा भी ओझल हो गया।सेवाभारती मातृमंडल की बहनों सुनीताजी,मालिनीजी  और सपनाजी के साथ रीताजी ने अपने क्षेत्रों में पुलिस कर्मियों को व अन्य जरूरतमंदों को  स्वयं मास्क बनाकर बांटे। मणिपुर के छात्रों सहित लगभग पांच हजार जरूरतमंद परिवारों को राशन पहुंचाया। हरिद्वार मातृमंडल से राखीजी  ने कुष्ठ रोगियों व सेवा बस्तियों में भोजन पैकेट बाटें तो ऋषिकेश की यज्ञीका दीदी ने हर्बल सैनिटाइजर,अंशुलजी ने वातावरण शुद्धि हेतु गोबर के उपलों से बनी धूप व अगरबत्तियां बांटी। 

इस सेवायात्रा में  कुछ किस्से तो अन्तरात्मा को झकझोरने वाले रहे। कानपुर पनकी मंदिर के सामने भूख से बदहाल 13 साल की मासूम,भोजन पैकेट्स को देखकर सड़क के उस पार से वाहनों के बीच में से दौड़ती आ रही थी, तो कल्याणपुरी बस्ती में 60 साल की वृद्धा गली में से हांफते हांफते  जल्दी से भोजन पैकेट की तरफ बढ़ रही थी।  दादा नगर में भूख से बेसब्र आंखें  गाड़ी के गेट खुलने का इंतजार कर रही थी।





भूख की तड़प, भोजन पर टिकी नजरों से उम्र का क्या वास्ता??? लाकडाऊन के दौरान, कानपुर में किशोरी केंद्र प्रमुख पूजा दीदी, मातृ मंडल महानगर अध्यक्ष क्षमा मिश्रा ने अपनी सहयोगी टीम के साथ वेन में लंच बॉक्स भरकर रेलवे स्टेशन,बस स्टेशन और कच्ची बस्तियों में जब भोजन बांटने जाती थी, तो ऐसे कई मंजर उनकी आंखों के आगे आ जाते थे। प्रतिदिन 300 पैकेट लगातार 21 दिनों तक बाटे गए। ह्रदय में ईश्वर से एक ही प्रार्थना थी कि ऎसी परिस्थिति हमारे देश में फिर कभी ना आये। 

सेवा का सूर्योदय जब ह्रदय में होता है तो समय और परिस्थितियां मायने नहीं रखती। विनाशक कोरोनाकाल में कहीं सृजक तो कहीं पालक बनते स्वयंसेवक भाईयों व बहनों की अगली कथा अगले अंक में.....

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