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बाल-बाल बचे मासूम

मध्य प्रदेश

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अग्नि जब विकराल रूप धारण करती है, तब मनुष्य बेबस हो जाता है। किंतु मनुष्य के साहस के समक्ष कभी-कभी आग भी समर्पण कर देती है। 23 नंवबर 2017 ये का दिन इंदौर (मध्यप्रदेश) के सबसे बड़े शासकीय हास्पीटल एम वाय के इतिहास में काली स्याही से लिखा जाता यदि चंद फरिश्तों ने अपनी जान की बाजी लगाकर 48 बच्चों को आग की भेंट चढ़ने से बचा न लिया होता। बच्चों के इमरजेंसी वार्ड में लगी आग में सबकुछ स्वाहा होने से पहले वार्ड के कांच के शीशे तोड़कर तीन लोगों ने बच्चों को निकालना शुरू किया उन्हे देखकर हास्पीटल के बाकी कर्मचारी भी मदद के लिए आगे आए। दिनेश सोनी, रमेश वर्मा व गजेंद्र रसीले ये तीनो हास्पीटल में गरीब मरीजो के लिए चलने वाले सेवाभारती के सेवाप्रकल्प के कार्यकर्ता थे। गरीब व असहाय मरीजों को जांच से लेकर इलाज तक हर संभव मदद करने के लिए सेवाभारती इंदौर के द्वारा ये हेल्पिंग सेंटर गत तीन वर्षों से सेवाभारती सेवाप्रकल्प के नाम से हास्पीटल के परिसर में चलाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत सहारा वार्ड में हर बेसहारा मरीज की हर तरह से मदद की जाती है। 




23 नवंबर की चर्चा करते ही गजेंद्र रसीले भावुक हो जाते है। आग लगने का शोर सुनकर वे जब अपने दोनो साथियो के साथ वार्ड के पास पहुंचे तो अफरा तफरी मची हुई थी बच्चे घबराहट के मारे चीख रहे थे परिजनों का बुरा हाल था तब बगैर एक सेकंड गवाएं ये तीनो कांच के शीशे तोड़कर आईसी यू में घुसे व बच्चों को निकालना शुरू किया व देखते ही देखते सबकी मदद से सभी 48 बच्चो को आग से बचाकर निकाल लिया गया। प्रकल्प प्रभारी महेंद्र जैन की माने तो यहां से जुड़े सभी कार्यकर्ता सेवाभाव से अपना समय इन बेसहारा मरीजो की देखभाल के लिए देते हैं। वे कहते हैं शायद इसी परदुखकातरता ने इन कार्यकर्ताओं को आग से मुकाबला करने का साहस दिया। इस प्रोजेक्ट के तहत उन सारे मरीजों की भी देखभाल की जाती है जिनके परिजन उन्हें उनके हाल पर छोड़कर चले जाते हैं। प्रकल्प के पास अपनी एंबुलेंस है जो 24 घंटे घायल मरीजों के लिए इंदौर में हर जगह पहुंचती है।

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