सब्‍सक्राईब करें

क्या आप ईमेल पर नियमित कहानियां प्राप्त करना चाहेंगे?

नियमित अपडेट के लिए सब्‍सक्राईब करें।

5 mins read

अपना घर अपनी छत - आगर मालवा

रश्मि दाधीच | आगर - मालवा | मध्य प्रदेश

parivartan-img

शरीर से अपंग विक्रम कचरे के ढेर में आंखें गढ़ा कर हाथों से प्लास्टिक की थैलियां और बोतलें बीनकर बोरे में भर रहा था। वहीं उसके आसपास उनके तीन छोटे-छोटे बच्चे भी मां का इसी काम में हाथ बंटा रहे थे। आखिर कचरे के इसी ढेर से विक्रम जैसे कई परिवारों का चूल्हा जलता था। 

फटे कपड़ों में धूल से सनी दस वर्ष की गीता दूर से लोगों को ठेले पर समोसे का लुफ्त उठाते देख रही थी। खाने वाले कुछ समझ पाते इससे पहले उसने समोसे की एक प्लेट में धूल उड़ा दी,क्रोधित ग्राहक ने बालिका को चांटा लगाकर प्लेट डस्टबिन में फेंक दी। इस तरह गीता (परिवर्तित नाम) ने भी जिंदगी में पहली बार समोसे का स्वाद चखा व अब वो अकसर ऐसा करने लगी।




यह मनगढ़ंत कहानियां नहीं मध्यप्रदेश के आगर मालवा में पारधी समाज के लोगों का वो पीडादायक सच था जिससे सभी ने मुंह फेर रखा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रवासी समुदाय(घुमन्तु) संगठन गठित कर पारधी समाज के इन पचास परिवारों के बीच काम शुरु किया व बदलाव की नयी तस्वीर लिखी।

आज जब विक्रम प्रधानमंत्री गृह योजना से मिले अपने घर से नौकरी करने निकलते हैं तो, स्कूल यूनिफार्म पहने अपने बच्चों को देखकर उनका मन संतोष से भर जाता है। परिवर्तन की इस सुखद पटकथा को लिखने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रवासी समुदाय मालवा प्रांत प्रमुख रवि बुंदेला बताते हैं कि घुमंतु समाज के लोग दस्तावेजों के अभाव में सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं उठा पाते थे। उनका आधार व राशन कार्ड बनवाकर पहले उन्हें मुख्य धारा का हिस्सा बनाया गया। आज इनका आत्मविश्वास इनकी ताकत बन चुका है। कोरोनाकाल में इन परिवारों ने संघ द्वारा बांटी जा रही राशन सामग्री लेने से न केवल मना किया बल्कि इन परिवारों के युवा मदद के लिए आगे आए।



कालबेलिया,पारधी गड़ोलिया अलग-अलग नामों से जानी जाने वाली ये घुमंतु जनजातियां देशभर में भीख मांगकर या कचरा बीनकर या फिर अन्य छोटे-मोटे काम कर जीवनयापन करने को मजबूर हैं।प्रवासी समुदाय आगर मालवा के जिला संयोजक हर्ष तिवारी बताते हैं कि यह काम इतना आसान नहीं था। अपने ही देश के लोगों से मिली घृणा, अपमानएवं निम्न जाति के समझे जाने का दंश पारधी समाज के मन में घर कर चुका था। इसलिए शुरूआत में वे कार्यकर्ताओं पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे। बड़े जतन से शुरू किया गया बाल संस्कार केंद्र भी तीन बार बंद करना पड़ा था।


धीरे-धीरे उनके मन को यह विश्वास हो गया कि ये संघ के लोग हमें अपमानित करने नहीं हमारा सहयोग करने आए हैं। इन पचास परिवारों की सूची बनाकर इनके आधार व राशन कार्ड बनवाए गये। कभी सड़क पर भीख मांगने वाले इन परिवारों को मनरेगा और ग्राम पंचायतों की परियोजनाओं के तहत मजदूरी कार्ड दिए गए। जिससे उन्हें अब सरकार द्वारा निश्चित मजदूरी प्रतिदिन मिल जाती है। इतना ही नहीं कार्यकर्ताओं ने इनके बच्चों का सरकारी स्कूलों में प्रवेश भी करवाया।

सोने पर सुहागा तो तब हुआ जब इसी समय शुरू हुई प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ इन परिवारों को भी मिला। पीढ़ियों से भटकती हुई जिंदगी को अपना घर और अपनी छत मिलना कोई आम बात नहीं थी। वर्षों से तरसती हुई आंखों को जीने की एक ठौर मिल गई थी।


संपर्क :- रवि बुंदेला

87701 19986

1050 Views
अगली कहानी