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ज्ञान बांटते चलो - एकलव्य शिक्षा प्रकल्प

अंबरीश पाठक | मेरठ  | उत्तर प्रदेश

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अपने  पिता  की ऊँगली थामे वह नन्हा बालक  अक्सर उन कंन्सट्रक्शन साइट्स पर जाता था, जहाँ उसके पिता राज मिस्त्री का काम  किया करते थे। तभी से उसके बाल मन में इन ऊँची इमारतों के लिए एक अजीब सा आकर्षण पैदा हो गया था। ऐसे ही एक दिन उसने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की, पर उसके पिता राम प्रकाश ने इसे बाल सुलभ इच्छा समझ कर प्यार से मना कर दिया।

यूं भी  अनपढ़ राम प्रकाश के लिए यह कल्पना करना भी मुश्किल था, कि जिन साहबों को वो नक्शा बनाते अंग्रेजी में गिटपिट करते देखता है, उसका अपना बेटा भी कभी उस जगह पर खड़ा हो सकता है। परन्तु बालक अतुल ने ठान लिया था की वो अपना सपना पूरा कर के रहेगा। गणित में 98% प्रतिशत अंकों के साथ जब उसने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की तो जितनी खुशी उसके पिता को हुई, उतना ही गर्व एकलव्य शिक्षा प्रकल्प के उन टीचर्स को हुआ जो अतुल पर  सालों से मेहनत कर रहे थे। उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के पल्लवपुरम में सेवाभारती द्वारा निर्धन छात्रों के लिए पांच सालों  से चलाये जा रहे इस नि:शुल्क कोचिंग सेंटर ने अतुल जैसे सैकड़ों बच्चों के सपने पूरे किये हैं। आज अतुल एक नामी कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है।




एकलव्य  शिक्षा प्रकल्प से निकले गरीब मेधावी विद्यार्थी शिक्षा के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। जे.ई.ई  परीक्षा  अच्छे अंकों से पास करने के बाद नोएडा की नामी कंपनी में जाब कर रही डॉली हो या फिर मेरठ के एम.आई.ई.टी कॉलेज से बी.टेक कर रहा  बिजली मैकेनिक का बेटा सद्दाम हो  ये सभी अपने हालातों का शिकार होकर भीड़ में गुम गए होते, यदि दयारामजी ने उनकी उंगली न थामी होती थी। राष्ट्रीय इंटर कालेज, लावड़, मेरठ से रिटायर्ड प्रिंसिपल दयाराम शर्मा की निर्धन मेधावी बच्चों की मदद करने की चाह उन्हें सेवाभारती तक ले गयी मेरठ के तत्कालीन प्रांतसेवाप्रमुख अनिलजी व उस समय के संघचालकजी के प्रयासों से पल्लवपुरम में इस प्रकल्प की नींव 2012 में पड़ी। दयारामजी ने शिक्षा व प्रबंधन का दायित्व संभाला व स्वयंसेवकों ने आर्थिक व व्यवस्था व पक्ष की जिम्मेदारी ली। आज संस्थान के पास आधुनिक कम्पयूटर लैब है, जहां छात्रों को एकाऊंटिग टैली जैसे रोजगार करक विषयों की ट्रेनिंग दी जाती है। प्रतिदिन की कक्षाओं के अलावा फिजिक्स व मैथ्स इत्यादि विषयों  के  एक्सपर्ट टीचर्स भी यहां निःशुल्क सेवाएं देते हैं। कैरियर काऊसलिंग के जरिए छात्रों को सही दिशा भी दी जाती है।

यहां के छात्रों के बेहतरीन प्रदर्शन से प्रभावित होकर मेरठ के गणमान्य नागरिक डाक्टर भरत कुमार ने अपना निजी भवन संस्था को दान कर दिया। दयारामजी आज भी बच्चों को स्‍वयं पढाते हैं। वे बताते हैं पिछले चार सत्रों मे 2012-13 में 109, 2013-14 में 113 व अगले दो सत्रों से 136 व 169 विद्यार्थी यहां से अध्ययन कर अच्छे कॉलेजेस में पढ़ रहे हैं। यहां से पढकर अब यहीं पढ़ा रही प्रिया सैनी मानती हैं कि एकलव्य संस्थान एक कोचिंग सेंटर नहीं एक परिवार है जिससे छात्र जीवनभर के लिए जुड़ जाते हैं।

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