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अंधकार में डूबे लोंगो को थमाई रोशनी की मशाल उड़ीसा

विजयलक्ष्‍मी सिंह | ओडिशा

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फैनी का इटालियन भाषा में अर्थ होता है मुक्त! 200 कि.मी प्रतिघंटे से भी अधिक गति की इन बेलगाम हवाओं ने उडीसा में जो कहर बरपाया है वो हम सब की कल्पना से भी परे है। कटक, भुवनेश्वर, खुर्दा, पुरी समेत, पांच जिलों के अधिकांश कस्बे अंधेरे में डूब गए है। एक लाख 56 हजार बिजली के पोल उखड़ गए हैं, डेढ़ करोड़ से अधिक नारियल के पेड़ इन तेज हवाओं से तहस-नहस हो गए हैं। गांव के गरीब किसानो के पास न खेती बची न घर। 64 लोगों व 65,000 मवेशियों को ये भयावह चक्रवात लील गया। बिना छत के मकानों में अपना सबकुछ गंवा बैठे लोगों को सहारा देने सबसे पहले पहुंचे संघ के स्वयंसेवक।



उड़ीसा में संघ के स्वयंसेवकों द्वारा चलाई जा रही उत्कल बिपन्न सहायता समिति के 1500 से अधिक स्वयंसेवकों ने 5 मई से आज तक पीड़ितों की मदद के लिए दिन-रात एक कर दिया। समिति द्वारा चलाए जा रहे 15 राहत शिविरों में अब तक 96000 से अधिक लोगों को खाना खिलाया जा चुका है। टैम्पररी छत यानी 1.2 लाख तारपोलीन देकर इनके परिवारों को जून की बारिश से बचाने का यत्न किया है।




समिति के सदस्य बिजाय स्वाईन बताते हैं कि जरूरतें बहुत बडी हैं व संसाधन कम हैं। महामारी से बचने के लिए 4,00,000 मॉस्किटो बांटने के बाद भी हम महज 4 प्रतिशत लोगो की मदद कर पाए है। दूरस्थ गांव हो या पुरी व कटक व भुवनेश्वर की झुग्गियां हर घर तक सोलर लैंप पहुंचाने है।भुवनेश्वर से 25 किलोमीटर दूर बसे छोटे से गांव बालीपटना को ही लें। इस क्षेत्र की प्रमुख नकदी फसल पान पूरी तरह से तबाह हो गई। इस मुस्लिम बहुल गांव के लोगों का बुरा हाल था ऐसे ही एक परिवार में जब समिति के लोग छत के लिए तारपोलीन, पहनने के लिए कपड़े व मच्छरदानी लेकर पहुंचे तो सैफुद्दीन खान की आंखों से आंसू बह निकले यह गरीब किसान रोते-रोते कहने लगा आज तक मैं संघवालों को अपना दुश्मन समझता था। पर सबसे पहले यही लोग हमारी मदद के लिए पहुंचे।




इस आपदा से पहुंचे नुकसान की भरपाई राहत सामग्री भर जुटा देने से नहीं हो पाएगी। पीड़ितों के पुनर्वास के लिए सतत् कार्य करना होगा। संघ में पूर्वी क्षेत्र के क्षेत्र सेवा प्रमुख जगदीशजी आगामी योजना पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि हम रोजगार पर विशेष ध्यान दे रहे हैं, इन परिवारों को नारियल, सुपारी, पोलांग व काजू के पेड़ लगा कर दिए जाएंगे। जो परिवारों की आमदनी का जरिया बनेंगे। परती छोड़ी गई सरकारी जमीन पर चंदन के पेड़ लगाए जाएंगे। बारिश आने से पहले हर घर को प्लास्टिक की छत मुहैया कराई जाएगी। चक्रवात ने समुद्र के किनारे लगने वाले लंबे पेड़ जिन्हें हम झूम जंगल कहते हैं वह नष्ट कर दिए हैं। जिसके कारण मौसमी हवाएं सीधे नगर में प्रवेश कर सकती हैं। इन जंगलो को पुनः विकसित करने की योजना भी संघ ने बनाई है। जीविका के लिए 50 परिवारों को नाव दी गई है। और नावे जुटाने का प्रयास भी किया जा रहा है। पान की खोती पर निर्भर रहने वाले 600 परिवारों के पुनर्वास के भी प्रयास किए जाएंगे। 14 एम्बुलेंस के साथ दिन और रात यूबीएसएस से जुड़े डॉक्टर और स्वास्थ्य कार्यकर्ता की टीम ने इन क्षेत्रों में महामारी फैलने से तो बचा लिया किंतु निरंतर प्राथमिक उपचार के लिए भी केंद्र विकसित किए जाएंगे.


संपर्क सुदर्शनजी

9439194221

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