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मैं तुलसी तेरे आंगन की

अंबरीश पाठक | बसवनगुड़ी नगर | कर्नाटक

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हले शादी। फिर विवाह का एक रुपहले सपने का  एक दुःस्वप्न में बदल जाना फिर  तलाक की मर्मांतक पीड़ा। ….और फिर दोबारा किसी पुरुष पर भरोसा कर पुनः विवाह सूत्र में बंधना। जीवन के यह उतार-चढ़ाव अच्छे-अच्छे जीवट वाली लड़की को भी तोड़ कर रख देते हैं और फिर सुनीता (बदला हुआ नाम) तो एक अनाथ थी। मगर इस कठिन परिस्थिति से गुज़रने के बावजूद वह टूटी नहीं, तो सिर्फ इसलिये कि उसका अनूठा परिवार हर कदम पर उसके साथ मज़बूती से खड़ा रहा। वो परिवार था बैंगलूर के बसवनगुड़ी नगर में स्थित अबलाश्रम। संघ के स्वयंसेवकों के सहयोग से संचालित यह आश्रम अकेली, पीड़ित असहाय  बहनों को पुन:समाज में  एक सम्मानजनक जीवन जीने में सहयोग करता है। आज गीता की शादी अमेरिका में एक प्रतिष्ठित मंदिर के युवा पुरोहित  से हो चुकी है वो अपनी लाड़ली बेटी के साथ बेहद खुश है।



इस अनूठे परिवार ने गीता जैसी जानें कितनी ही मज़लूम और अनाथ लड़कियों के जीवन में माँ के सहज वात्सल्य और पिता की सजग देखरेख दोनों की कमी को पूरा  किया है।  

अब बात करते हैं मनीषा (बदला हुआ नाम)` की बलात्कार की अमानुषता के पश्चात कुंवारी मां बनने जा रही इस लड़की  को  घोर डिप्रेशन की हालत में अबलाश्रम लाया गया था। तब मनीषा  किसी से बोलती थी, ना ही कुछ रियेक्ट करती थी, बस शून्य में ताकती रहती थी। मगर अबलाश्रम के सह्रदयी माहौल में रहते हुए वह सिर्फ पुनः जीवन जीना सीखी, बल्कि यहीं पर एक कुशल आफिस स्टाफर के रूप में कार्य करते हुए आज दूसरी बहनों के जीवन को दिशा देने का कार्य कर रही है। आश्रम की बहनों को पढ़ाने के साथ ही उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है इतना ही नहीं इनके प्लेसमेंट के लिए भी प्रयास किए जाते हैं।

अबलाश्रम प्रबंधन समिति के सेकेट्री बसवनगुड़ी नगर के संघचालक बी.वी शेषा जी  बताते हैं  कि अबलाश्रम की नींव सौ वर्ष से भी अधिक समय पूर्व 1905 में उत्साही आर्यसमाजी युवक चक्रवर्ती वेंकट वरदा आयंगर द्वारा रखी गई थी। उन्होंने खुद एक बाल विधवा से विवाह कर रूढ़िवादी समाज पर जबरदस्त  चोट की थी। आयंगर जी के घर से विधवा पुनरोद्धार के प्रण के साथ आरंभ हुआ अबलाश्रम आज  कर्नाटक में एक ऐसे विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है जिसकी छांव में सैंकड़ो बहनों को खुशहाल इंडीपेंडेंट बनाया है।


श्री शेषा जी को आज भी वह पल स्मरण है जब वे पहली बार यहां आए थे तब उस दिन से शेषा जी अबलाश्रम के ही हो कर रह गए। आज संघ के स्वयंसेवकों  ने अपने सेवा समर्पण से इस संस्था को एक नई ऊंचाई दी है सिर्फ आश्रम की व्यवस्था को अधिक पारदर्शी समाजोन्मुख बनाया है बल्कि जीवन में भी संस्कार योग देशभक्ति के रंगो का समावेश कर उन्हें देश के लिए जीने का जज्बा सिखाया है। इस आश्रम से निकली कुछ बहनों ने अपने जीवन के कुछ वर्ष घोर वनवासी इलाकों में सेवाकार्य करते हुए बिताये हैं| जो बात अबलाश्रम को अन्य शेल्टर होम्स से अलहदा मुकाम देती है वह है, यहाँ सिर्फ 16 से 25 वर्ष की लड़कियों को प्रवेश दिया जाना। शेषा जी बताते हैं कि छोटी बालिकाओं की देखरेख आसान होती है, इसलिए सैंकड़ो संस्थाए इस सेगमेंट में कार्य कर रही है। जब यह बालिकाएँ किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखती हैं, तब ज्यादातर संस्थाएं उनकी जिम्मेदारी उठाने में कठिनाई अनुभव करने लगती हैं, ऐसे में अबलाश्रम इनका जिम्मा उठाने आगे आता है। आलम यह है कि सुरक्षा, स्वालंबन, सौहार्द, संस्कृति, सहायता, स्वाभिमान, सेवासुमन, सुरभि, सुबोध, संबंध, समन्वय, सबला, शुभम सम्मान के विचार शिल्प पर कार्य कर रहे अबलाश्रम की धाक पूरे कर्नाटक में जम चुकी है।


यहां की बेटियाँ चाहे कहीं बहू बनकर जाएं या फिर किसी प्रोफेशन में, हर मोर्चे पर वह आदर्श साबित होती हैं। बिन माँ-बाप की दो सगी बहनें रश्मि और राम्या ने अबलाश्रम में रहते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त की। आज इनमें से एक बहन प्रख्यात होम्योपैथी डॉक्टर है और दूसरी बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है। अबलाश्रम की बेटियों को बहु के रूप में पाने के लिए कुलीन सम्पन्न परिवार सदैव तत्पर रहते हैं।


संपर्क - बी.वी शेषा

संपर्क नंबर – 9483334328

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