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आशाओं का सृजन

रश्मि दाधीच | दिल्ली

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5 साल के राजू को भूख लगी, तो मां ने एक चम्मच आटे को पानी में घोलकर पिला दिया। वहीं  पास रहने वाले रामू का परिवार दो दिन से रोटी के 5 टुकड़े कर जैसे-तैसे अपना पेट भर रहा था। 6 महीने के बच्चे की मां ने  पिछले दो दिन से कुछ नहीं खाया था, अब तो तन से दूध भी सूख गया था। यह कल्पना नहींराजधानी दिल्ली में यमुना खादर के उस हिस्से की हकीकत है,जहां आज भी लोग बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से दूर, शहर से अलग - थलग नदी के बीचों-बीच, टापू पर अपना जीवन बसर कर रहे हैं। यहां पीने का पानी भी 5 किलोमीटर दूर ओखला से कन्टेनरों में भरकर लाया जाता है। बच्चे पढने के लिए स्कूल नाव में बैठकर जाते हैं। मछलियाँ व सब्जियां बेचने वाले इन मजदूरों के लिए दिल्ली का टोटल लॉकडाऊन भुखमरी लेकर आया।




सेवाभारती के प्रांत संगठन मंत्रीसुखदेवजी स्वयंसेवक साथियों व बहनों के साथ, नाव पर राशन, कपड़ेसेनेटरी नैपकिनदवाइयां, पीने का पानी, लेकर यमुना खादर पहुंचे तो नजारा कुछ यूं था।  नाव अभी तो किनारे पर लगी ही थी, कि छोटे से लेकर बड़े, करीब 60-65 लोगों की आंखें उन्हें कुछ पाने की उम्मीद से देख रही थी। 

बस्ती की झोपड़ियों के भीतर, रोज की कमाई से जलने वाले सूने पड़े चूल्हे, रीते बर्तन भुखमरी की  कहानी बयां कर रहे थे। नन्ही सी जान कह रही थीदे दो बस एक निवाला, सब्र के आंसू सूख गए, आज तो दे दो कोई खाना। 

प्रत्येक व्यक्ति की आंखें नम थी, जहां स्वयंसेवक भाइयो व बहनों को पछतावा था, कि हम इतनी देर से यहां क्यों पहुंचे? तो वहीं 3 दिन से भूखे बस्ती के लोगों की आंखों में राहत थी, कि  भगवान के घर देर है अंधेर नहीं… .

कमाल तो तब हुआ जब नाव पर सवार होकर 5-6 सिलाई मशीनें इस बस्ती में पहुंची व दिल्ली सेवाभारती की प्रांत कार्यालय मंत्री अंजू दीदी, व उपासना दीदी ने खुद, अपने हाथों से वहां महिलाओं को मास्क सिलना सिखाया। देखते ही देखते उस बस्ती में, स्वाभिमान की रोटी की महक हर चूल्हे से आने लगी। मुश्किलें अभी भी बहुत हैं, पर सेवा को सौभाग्य मानने वाले इन सेवादूतों के सहारे से, इस बस्ती के लोगों ने ही नहीं, दिल्ली झंडेवाला मंदिर के आसपास भीख मांग रहे लोगों ने भी, आत्मनिर्भरता की कला अपने हाथों में सजा कर मिट्टी और गोबर के इको फ्रेंडली गणेश जी की मूर्तियों में रंग भरे। भीख मांगने वाले हाथ, 200 से 300 रू प्रतिदिन, आज अपनी मेहनत की कमाई लेने के लिए उठ रहे हैं। कभी भीख मांगकर गुजारा करने वाली, 57 महिलाएं लोकल टू वोकल कैंप में, अब करवाचौथ की थालियां डेकोरेट करती नजर आती हैं।




सेवाभारती दिल्ली प्रांत प्रचार मंत्री भूपेन्द्र जी बताते हैं, अकेले दिल्ली में 12500 से अधिक स्वयंसेवकों व सेवाभारती के कार्यकर्ताओं ने मिलकर 1,91000 राशन किट व 91  लाख लोगों तक, तैयार भोजन के पैकेट बांटे। 

जिनका दर्द सभ्य समाज कभी समझना नहीं चाहता, वेश्यावृत्ति के दलदल में फंसी, दिल्ली के जीबी रोड के रेडलाइट इलाके की वो  986 महिलाएं, जो कोरोनाकाल में  रोटी - रोटी को मोहताज हो गई थीने जब स्वयंसेवकों से बहनजी व माताजी का संबोधन सुना, तो रो पडी़ं। राशन किट लेकर विनती करने लगी हमें इतना सम्मान न दीजिए। वहीं मयूर विहार कालोनी में बरसों से रह रहे किन्नर समाज ने कार्यकर्ताओं से न सिर्फ़ सम्मानजनक व्यवहार किया, बल्कि ढेरों दुआएं दी और राशन पहुंचाने के लिए आभार प्रकट किया।



वे हिंदू है, पर उनके पास भारतीयता कि पहचान नहीं, पाकिस्तान से आए इन शरणार्थियों की पीड़ा का अनुभव, यमुना के किनारे लगे बीहड़ जंगलों के शिविरों में जाकर आसानी से लगाया जा सकता है। सेवा भारती मातृ मंडल की टीम जब वहां राशन किट लेकर पहुंचीतो पता चला उन शिविरों में करीब 20 - 25 महिलाएं गर्भवती हैं, अस्पतालों में ओ.पी.डी बंद है, आपातकालीन सेवाएं भी इक्का-दुक्का ही चल रही हैं, साधारण सा भोजन भी मुश्किल था, वहीं गर्भवती महिलाओं के लिए पोस्टिक आहार नामुमकिन सा था। भूतकाल में चले चाबुकों के निशान आने वाले भविष्य पर भी साफ दिखाई दे रहे थे। मातृमंडल की बहनों का दिल भर आया, उन्होंने इन महिलाओं के लिए विशेष तौर पर गोंद के लड्डू, ड्राई फ्रूट्स, दलिया, चने, देसी घी, मिल्क पाउडर व अन्य जरूरी सामान मिलाकर, एक पौष्टिक आहार का किट तैयार किया। अब सेवा भारती द्वारा चलाई जा रही वेन, हर 15 दिन से डॉक्टर के साथ जाकर इन महिलाओं, उन परिवारों के बच्चों और बुजुर्गों की भी देखरेख कर उचित दवाइयां और परामर्श दे रही हैं। 

एक मजबूत संगठन बद से बदतर हालातों में भी हार नहीं मानता। जितनी मुश्किलें उतने हल। ह्रदय में सेवा की ज्योत जलाए निरंतर बढ़ते यह कदम, हर बाधा को पार कर आगे बढ़ते जा रहे हैं। स्वयंसेवको की मुश्किलों से जंग की नई कथा अगले अंक में।

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